अयोध्या की गौरव गाथा अत्यंत प्राचीन है। अयोध्या का इतिहास भारत की संस्कृति का इतिहास है। सरयू के तट पर बने घाट शताब्दियों से भगवान श्रीराम का स्मरण कराते आ रहे हैं। श्रीराम हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक हैं। अपनी और पूर्वजों की जन्मभूमि की रक्षा प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य माना जाता है।
इतिहास साक्षी है कि अयोध्या की धरती पर बने मंदिर को जब विदेशी मुस्लिम आक्रांता बाबर ने अपने क्रूर प्रहारों से तोड़ दिया था तभी से यहां के समाज को अनेकों लड़ाइयां लड़नी पड़ीं। श्रीराम जन्म भूमि के लिए सन् 1528 से 1530 तक चार युद्ध बाबर के साथ, 1530 से 1556 तक दस युद्ध हुमायूं से, 1556 से 1606 के बीच 20 युद्ध अकबर से, 1658 से 1707 ईस्वी में 30 लड़ाइयां औरंगजेब से, 1770 से 1814 तक पांच युद्ध अवध के नवान सआदत अली से, 1814 से 1836 के बीच तीन युद्ध नसीरुद्दीन हैदर के साथ, 1847 से 1857 तक दो बार वाजिदअली शाह के साथ तथा एक-एक युद्ध 1912 और 1934 में अंग्रेजों के काल में हिन्दू समाज ने लड़ा।
श्रीराम जन्म भूमि की मुक्ति के लिए कुल 76 लड़ाइयों के अलावा आज तक लाखों लोगों ने संघर्ष किया और इन सभी ने अपने प्राणों की आहूति दी। इतना कुछ सहने के बावजूद न कभी राम जन्म भूमि की पूजा छोड़ी, न परिक्रमा और न ही उस पर कभी अपना दावा छोड़ा।
इतिहास बताता है कि राम जन्म भूमि के लिए हिन्दुओं ने अपना बहुत खून बहाया है। श्रीराम जन्म भूमि के महंत महात्मा श्यामानंद जी के पास ईस्वी सन् 1525 में एक ‘ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान’ नामक मुसलमान फकीर आया। उसने जन्म भूमि का महात्म्य सुनकर अपनी श्रद्धा का ढोंग किया। कुछ काल पश्चात् जलाल शाह नामक एक और फकीर वहां आया।
फिर आिशकान और जलाल शाह का षड्यंत्र चला। इनके षड्यंत्र से प्राचीन नमूने की लम्बी-लम्बी कब्रें कई स्थानों पर अयोध्या जी में खुदवाई गईं। राणा संग्राम सिंह के साथ हुए युद्ध के बाद बाबर जलाल शाह के पास 29 मार्च, 1527 को अयोध्या जी आया। जलाल शाह ने अपनी सिद्धि की धमकी देकर जन्म भूमि गिराकर उस पर मस्जिद बनाने के लिए बाबर को राजी कर लिया । बाबर मीर बाकी को इसका हुक्म देकर चला गया। लखनऊ गजेटियर का अंक 38, पृष्ठ क्र. 3 पर यूं लिखा हैः- ‘‘अयोध्या के प्रसिद्ध जन्म भूमि के मंदिर को तोड़ते वक्त युद्ध कई दिनों तक चलता रहा। उसमें एक लाख 74 हजार हिन्दू मर चुके थे, पर बांके खान मंदिर में घुस नहीं सका।
मंदिर पर गोले दागे तब मंदिर गिरा। 29 मार्च, 1527 को जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर (अउन्द) अयोध्या आया। श्रीराम जन्म स्थान मंदिर पर महात्मा श्यामानंद जी रहते थे। फकीर हजरत जलाल शाह व फजल अब्बास मूसा आशिकान आदि के षड्यंत्र से बाबर का इस मंदिर को विसमार करने का हुक्मनामा इस तरह जारी हुआ। मंदिर गिराए जाने की शाही घोषणा पर भारत भर के हिन्दुओं में क्रोध और क्षोभ की लहर दौड़ गई।
महात्मा श्यामानंद और पुजारियों ने मंदिर का पवित्र सामान हटवा दिया और प्रातः होते ही कहा कि हमें मार कर ही कोई अन्दर आ पाएगा। जलाल शाह की आज्ञा से पुजारियों के सिर काट दिए गए। इस बीच राजा मेहताब सिंह जो बद्री नारायण यात्रा पर निकले थे, अयोध्या के निकट पहुंचे। सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने कहा कि अब हम बद्री नारायण की नहीं, स्वर्ग की यात्रा करेंगे।’’
श्रीराम जन्म भूमि को आतताइयों से मुक्त कराने के लिए मेहताब सिंह ने अपने अनुचरों को भेज कर रातोंरात एक लाख 76 हजार योद्धा इकट्ठे कर लिए। उधर बाबर की सेना के चार लाख 25 हजार सैनिक भी पहुंच चुके थे। 70 दिन भीषण संग्राम होता रहा। राजा मेहताब सिंह समेत सभी हिन्दू वीर शहीद हो गए। इस तरह एक लाख 76 हजार हिन्दुओं की लाशों पर मस्जिद की नींव रखी गई। दुख तो इस बात का रहा कि तब से लेकर स्वतंत्र भारत में हिन्दुओं की आस्था पर लगातार प्रहार किए जाते रहे।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था-प्रत्येक राष्ट्र का लक्ष्य विधाता द्वारा पूर्व निर्धारित है। प्रत्येक राष्ट्र के पास संसार को देने के लिए संदेश है। प्रत्येक राष्ट्र को किसी विशेष संकल्प की पूर्ति करनी है। अतः प्रारम्भ से हमें अपनी जाति के जीवन लक्ष्य को समझ लेना होगा। धर्म भारत की आत्मा है।
आज तुम युगों तक धक्के सहकर भी अक्षय हो, इसका कारण केवल यही है कि धर्म के लिए तुमने बहुत कुछ किया है। विदेशी हमलावरों ने मंदिर तोड़े, किन्तु जैसे ही आंधी गुजरी मंदिर का शिखर विशेषकर गुजरात का सोमनाथ मंदिर तुम्हें अक्षय ज्ञान प्रदान करेगा। मंदिर बार-बार नष्ट हुए और खंडहरों में से पुनः उठ खड़े हुए, पहले की तरह सशक्त और नवजीवन प्रवाह। 5 अगस्त काे वह शुभ घड़ी आ गई है जब राष्ट्र अपने विशेष संकल्प (राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण) की पूर्ति करेगा।