मन के हारे हार है, मन जीते-जग जीत - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

मन के हारे हार है, मन जीते-जग जीत

इसमें कोई शक नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में हमारी पीढ़ी ने कोरोना की शक्ल में अब तक की सबसे बड़ी महामारी को झेला है। कितने ही लोग अपनों से बिछड़ गए हालांकि सरकारी तौर पर, प्राइवेट तौर पर और मानवता के आधार पर लोगों ने एक-दूसरे के लिए बहुत कुछ किया

इसमें कोई शक नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में हमारी पीढ़ी ने कोरोना की शक्ल में अब तक की सबसे बड़ी महामारी को झेला है। कितने ही लोग अपनों से बिछड़ गए हालांकि सरकारी तौर पर, प्राइवेट तौर पर और मानवता के आधार पर लोगों ने एक-दूसरे के लिए बहुत कुछ किया। परंतु यह सच है कि बीमारी या महामारी का डर हमारे अंदर इस कदर बैठ जाता है कि हम सामाजिक जीवन के तौर तरीके भी भूल जाते हैं। सार्वजनिक जीवन में ऐसा नहीं होना चाहिए। परंतु तीन दिन पहले हरियाणा के गुरुग्राम स्थित मारुति विहार में एक महिला ने खुद को और अपने तीन साल के बेटे को पिछले तीन साल से सिर्फ इसलिए बंद करके रखा हुआ था कि दोबारा कहीं कोरोना न आ जाये। इस महिला ने अपने रिश्तेदारों और पति से भी दूरियां बना ली और यही लगता था कि घर खाली है। वह कोरोना के संक्रमण से इस कदर डरी हुई थी कि 2020 के लॉकडाउन के बाद हालात जब सामान्य भी हुए तो भी उसने किसी को घर में आने नहीं दिया और बेटे को अपने साथ घर में कैद कर लिया। इस महिला का पति सुजान इंजीनियर है और पत्नी मुनमुन  जिस जगह रह रही थी वहां पड़ोसियों तक को भी पता नहीं था। आखिरकार सुजान के सब्र का बांध टूट गया। उसने चाइल्ड वेलफेयर कमेटी से संपर्क किया और एक विचित्र रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया। हैल्थ डिपार्टमेंट और बाल कल्याण विभाग के अधिकारियों के साथ पुलिस भी वहां पहुंची। ताला लगा दरवाजा तोड़ दिया गया। मां-बेटे को बाहर निकाला गया। उनका अस्पताल में चेकअप करवाया गया। धीरे-धीरे अब सब कुछ सामान्य हो रहा है लेकिन यह अजीब दास्तान अपने पीछे कई सवाल छोड़ गयी है।
पति सुजान ने सारे मामले को लेकर रिश्तेदारों से बात की लेकिन कोई हल नहीं निकला। सालों साल गुजरते गए। आप कल्पना कीजिए कि इस दौरान पति वीडियो कॉल करता और अपने बेटे और पत्नी से बात करता रहा। दूध, सब्जियां, राशन का सामान, फल सब कुछ अपनी पत्नी के पास बंद घर के दरवाजे तक छोड़ जाता था। इतना ही नहीं वह बच्चे के स्कूल की फीस और बिजली का बिल सब भरता रहा। इस महिला के मन में कोरोना की वैक्सीन बच्चों के लिए तैयार किये जाने को लेकर दहशत थी। वह चाहती थी कि पहले बच्चे को वैक्सीन लगे, उसके दिमाग में ऐसा फितूर बैठ गया कि अगर वह और उसका बच्चा घर से बाहर निकले तो उन्हें कोरोना हो जायेगा। जब से यह बच्चा बंद है तब से वह तीन साल से सूरज की धूप नहीं देख पाया। वह बहुत कमजोर हो चुका है। आज उसकी उम्र दस साल है। 
यह कहानी उन लोगों के लिए भी एक चौंकाने वाली बात है जो गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं। आज की तारीख में सब कुछ संभव है। समस्या किसी के साथ भी आ सकती है, घटना किसी के साथ भी घट सकती है लेकिन रिश्ते बनाए रखना बहुत जरूरी है। समाज में लोग एक-दूसरे से मिलते हैं। हफ्ते में पांच दिन कामों में व्यस्त रहते हैं और बचे हुए छुट्टी के दो दिन एक-दूसरे से मिलते हैं एंज्वाॅय करते हैं। यहां इस मां-बेटे की जीवन शैली इस कद्र थी ​िक खानपान सब चल रहा था लेकिन तीन साल तक घर में खुद को कैद रखना यह जरूर सवाल खड़े करता है। मेरा मानना है कि आज की जीवनशैली अपने आप में भले ही मस्त रहने की हो सकती है लेकिन अड़ोस-पड़ोस से जरूर जुड़ना चाहिए और एक-दूसरे के दु:ख-सुख का ख्याल भी रखना चाहिए। हम तो यही कहेंगे कि इस महिला के पति सुजान को बहुत पहले ही यह पग उठा लेना चाहिए था और उन्हें इतनी देर भी नहीं करनी चाहिए थी। मुसीबत के वक्त अपना दर्द आपस में बांट लो तो यह कम हो जाता है और खुशी आपस में बांट लो तो यह बढ़ती है। इंसान ही इंसान के काम आता है और इंसानियत की ही समाज को सबसे ज्यादा जरूरत है। मौके पर जरूरतमंद की मदद एक परोपकार है। हमारी जीवनशैली कितनी भी अपनेपन से और अलग रहने से क्यों न जुड़ी हुई हो लेकिन समाज में भी अपनी भागीदारी निभानी पड़ती है। विदेशों में जाकर भारतीय इक्ट्ठे होकर रहते हैं लेकिन हमारे यहां एक अलग चलन चल रहा है कि सब अलग रह कर जीवन को सुखमय बिताना चाहते हैं, हालांकि सुजान और मुनमुन की कहानी इंसानियत से तो जुड़ी है लेकिन फिर भी एक संदेश देती है कि अच्छे बुरे वक्त के दौरान अगर आप समाज में एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं तो बुरा वक्त कट जाता है। कि  
हालांकि आजकल दिल्ली भर में ड्राई कफ (सूखी खांसी) और ज्वर बहुत बढ़ गया है, लेकिन उपचार और सावधानी बहुत जरूरी है। इसके अलावा बीमारी या मुसीबत में हौसला भी रखना चाहिए। याद रखो मन के हारे हार है, मन जीते जग जीत। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five − three =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।