गुरु जी को खालसा सजाने की जरुरत क्यों पड़ी? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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गुरु जी को खालसा सजाने की जरुरत क्यों पड़ी?

गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ तैयार करने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उन्होंने इस देश के दबे-कुचले लोगों को देख लिया था जो कि जुल्म बर्दाश्त कर सकते हैं मगर जुल्म के खिलाफ लड़ने की ताकत उनमें नहीं थी। 1699 ई. की वैसाखी वाले दिन गुरु जी ने उन्हीं कमजोर लोगों में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें जुल्म के खिलाफ लड़ने की शक्ति प्रदान करते हुए एक ऐसा न्यारा पंथ तैयार किया जिसे खालसा पंथ कहा गया। खालसा भाव पूरी तरह से खालिस। जो किसी भी दूसरे धर्म या व्यक्ति से किसी भी तरह का बैर विरोध ना रखता हो। किसी पर भी जुल्म होता देख उसकी रक्षा के लिए आगे आए। स्वयं ना किसी पर जुल्म करे और ना ही किसी का जुल्म सहे।
वास्तव में उस समय लोगों को धर्म की आजादी नहीं थी, जात पात, छुआ छूत के चलते ऊंची जाति के लोगों द्वारा नीची जाति पर जुल्म ढहाया जाता इस सबसे निजात दिलाने हेतु ही गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की और एक ऐसा अमृत तैयार किया जिसके सेवन के बाद मानो ऐसी दिलेरी आने लगी और गुरु का अकेला-अकेला सिख सवा लाख के बराबर हो गया। खालसा पंथ की स्थापना से पहले गुरु साहिब द्वारा दीवान सजाया गया जिसमें हज़ारों की गिनती में लोग देश के अलग-अलग राज्यों से शामिल हुए। गुरु जी के द्वारा पांच सिर मांगे गये ऐसे में पांच लोग निकलकर आये जिसमें लाहौर से दयाराम खत्री, हस्तिनापुर से धर्म चंद जाट, जगन्नाथ पुरी से हिम्मत राय कहार, द्वारका से मोहकम चंद छींबा और बीदर से साहिब चंद नाई। इन सभी को गुरु जी ने अमृत छकाकर दया सिंह, धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह और साहिब सिंह बनाकर पांच प्यारे सजाये और फिर पांच प्यारों से स्वयं अमृत पान किया।
गुरु जी ने सदियों से दबी-कुचली भारतीयता को नई चेतना दी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को अपने नाम के आगे सिंह और स्त्रियों को अपने नाम के आगे कौर लगाने का ऐलान किया। तब से सिख पंथ इस दिन को खालसा स्थापना दिवस अर्थात खालसे के जन्मदिन के तौर पर मनाता आ रहा है। सिख दुनिया के किसी भी कोने में हो उसकी यह इच्छा होती है कि वह वैसाखी का पर्व आनंदपुर साहिब की धरती पर जाकर मनाये। वह धरती जिस पर खालसा पंथ की साजना हुई। आनंदपुर की धरती से चली इसी शमा ने भारत में मुगल राज की जड़ें उखाड़ने में महान योगदान दिया।
गरीब सिखों की कौन लेगा सार
आमतौर पर देखा जाता है कि गरीब सिखों की सार लेने वाला आज कोई भी नहीं है। हर गली-मोहल्ले में गुरुद्वारे खोलकर उन्हें आलीशान बनाने, आए दिन महंगे से महंगे कीर्तनी बुलाकर कीर्तन दरबार और लंगर लगाने तक ही सिखों ने अपने आप को सीमित कर लिया है जो कि सिखी सिद्धांत के विपरीत है। गुरु साहिब ने हमें गुरु की गोलक -गरीब का मंुह वाले सिद्धांत पर चलने की प्रेरणा दी थी भाव अगर किसी जरूतमंद की जरूरत को हम पूरा करते हैं तो इससे बड़ी सेवा और कोई हो नहीं सकती। गुरु साहिब के समय महंतों को घर-घर जाकर माया एकत्र करके लाने की जिम्मेवारी सौंपी गई थी और एकत्र हुई माया को इन्हीं कार्यों पर खर्च किया जाता था। धीरे-धीरे गुरुद्वारों में गोलके रखी जाने लगी जिसके बाद गुरुद्वारों में प्रबन्धक बनने वालों की गिनती में भी इजाफा होता चला गया और आज हालात ऐसे बन चुके हैं कि संगत द्वारा गोलकों में आने वाली माया को जरुरतमंदों पर तो ना के बराबर ही खर्च किया जाता है।
सिख ब्रदर्सहुड इन्टरनेशनल के महासचिव गुणजीत सिंह बख्शी की सोच है कि गुरुद्वारों से गोलकों के सिद्धांत को समाप्त कर संगत को सेवा राशि जरूरतमंदों को सीधे आनलाईन भेज देनी चाहिए इससे बिना किसी बिचौलिए के मदद जरूरतमंद तक पहुंच सकेगी और साथ ही गुरुद्वारों में प्रबन्धकी हासिल करने के लिए होने वाली लड़ाईयां अपने आप ही समाप्त हो जाएंगी। यह सुझाव तो अच्छा है पर इसे अमल में लाना उतना ही मुश्किल, अगर ऐसा हो जाए तो वाक्य में ही सिखों में आपसी खींचतान समाप्त हो सकती है।
सिख के लिए अमृत का महत्व
325 वर्ष बीतने के पश्चात भी आज तक जत्थेदार, ग्रन्थी, कीर्तनीए, सिख प्रचारक लोगों को अमृत का महत्व समझाने में कहीं ना कहीं पीछे रह गये हैं या यह कहा जाए कि इनमें से ज्यादातर स्वयं अमृतपान करते समय गुरु जी से किए जाने वाले वायदों को पूरा नहीं करते होंगे ऐसे में वह सिख समाज का मार्गदर्शन कैसे कर सकते हैं यह अपने आप में एक प्रश्न है।
दूसरी ओर डेरावादी संप्रदायों ने अपने ढंग से अमृतपान के नियम बनाए हुए हैं। गुरु जी ने किसी भी व्यक्ति को जबरन सिख बनने के लिए दबाव नहीं बनाया था। पहले सहजे-सहजे सिखी में आने के बाद जब व्यक्ति स्वयं रहत मर्यादा के नियम का पालन करने लगे तभी उसे अमृत पान करना चाहिए। मगर आजकल देखा जाता है कि लोग अपनी राजनीति चमकाने के लिए कई तरह के लोभ-लालच देकर अमृत पान करने वालों की गिनती तैयार कर लेते हैं उनमें से बहुत कम लोग होते हैं जो नियमों का पालन करते हैं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी धर्म प्रचार के चेयरमैन जसप्रीत सिंह करमसर की मानें तो उनके द्वारा दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में दीवान सजाकर लोगों को पहले अमृत का महत्व और इसके नियमों की जानकारी दी जा रही है जिसके चलते अभी तक 500 से अधिक व्यक्ति स्वयं आगे आकर अपना नाम लिखवा चुके हैं, जिन्हें 13 अप्रैल को गुरुद्वारा मजनू का टीला में एक साथ अमृत पान कराया जायेगा। अगर वाकय में ही ऐसा हो रहा है तो इसे एक अच्छी पहल माना जा सकता है।
लम्बे अरसे बाद दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी द्वारा इस तरह का अमृत संचार कार्यक्रम करवाया जा रहा है। वहीं कमेटी के पूर्व चेयरमैन परमजीत सिंह राणा की माने दिल्ली में सैंकड़ों सिंह सभाएं हैं पर उनमें से ज्यादातर प्रबन्धक भी अभी तक अमृतपान नहीं किए हैं, और जिन्होंने किया भी हुआ है उनमें से भी अधिकांश नियमों का पालन पूरी तरह से नहीं करते। इसलिए पहले उन्हें इसके लिए तैयार करना चाहिए अगर प्रबन्धक स्वयं तैयार होंगे तभी तो वह अपनी सिंह सभा की संगत को तैयार कर सकेंगे। वाक्य में ही अगर प्रबन्धक गुरबाणी का ज्ञान रखते हों, अमृतधारी होते हुए नियमों का पालन सही ढंग से करते हों तो कोई भी सेवादार या स्टाफ कभी भी गलती करने की सोच ही नहीं सकता। आज भी बहुत से ऐसे प्रबन्धक हैं जिनके परिवारों में खुशी समागमों में खुलकर शराब के दौर चलते देखे जा सकते हैं, उनके अपने परिवारों में महिलाएं और युवा वर्ग केशों की बेअदबी कर सिखी से दूर होता जा रहा है पहले उन्हें स्वयं को सुधार करना होगा तभी वह संगत में सुधार ला सकते हैं।

– सुदीप सिंह

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