दुनिया में जिधर भी नजर दौड़ाएं उथल-पुथल ही नजर आ रही है। मानवता कराह रही है। लोग मर रहे हैं। सैकड़ों लोग हताहत हो रहे हैं। कहीं भूख से बच्चे बिलबिला रहे हैं तो कहीं अपने ही देश में लोग शरणार्थी हो रहे हैं। कहीं युद्ध है तो कहीं आतंकवाद। सूडान एक बार फिर वैश्विक खबरों में है। जहां इस समय अराजकता का माहौल है। शहरों से उठता हुआ धुआं और उनके बीच से गुजरते फाइटर जेट इस बात की ओर इशारा करते हैं कि देश में हालात बहुत बिगड़ चुके हैं। जिस देश ने अकाल का सामना किया हो और जिसने रोटी के लिए संघर्ष किया हो वहां गृहयुद्ध की स्थिति कैसे पैदा हो गई। यह एक विचारणीय प्रश्न है। सूडान में सेना और प्रतिद्वंद्वी अर्धसैनिक बल में खूनी संघर्ष छिड़ा हुआ है। इस संघर्ष में केरल निवासी एक भारतीय समेत कम से कम 61 लोगों की मौत हो गई है। इनमें तीन संयुक्त राष्ट्र कार्यकर्ता भी शामिल हैं। हिंसा में लगभग एक हजार लोग घायल हुए हैं। यद्यपि सेना ने अर्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्स समूह के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक कर सत्ता के लिए खूनी संघर्ष में बढ़त हासिल कर ली है। लेकिन इससे लोकतंत्र बहाल करने की उम्मीदों को ही झटका लगा है। इस सारे घटनाक्रम के बीच सूडान में रहने वाले भारतीय चाहते हैं कि देश में जल्द से जल्द शांति हो जाए। प्राचीन समय से ही इस देश का भारत से ऐतिहासिक, राजनीतिक और आर्थिक रिश्ता रहा है। लगभग दो हजार भारतीय मूल के लोग पीढ़ियों से सूडान में रह रहे हैं। इसके अलावा कई भारतीय कंपनियों ने सूडान में पैसा लगा रखा है और बहुत से भारतीय नौकरियों के सिलसिले में वहां हैं। भारत सरकार को भारतीय नागरिकों की चिंता है। तभी उसने स्थिति को देखते हुए परामर्श जारी किया था कि वे अपने घरों में ही रहें। भारतीय विदेश मंत्रालय की सूडान की स्थिति पर नजर है।
सूडान में जारी खूनी संघर्ष के केंद्र में दो लोग हैं। इनमें एक सूडान के सैन्य नेता अब्दुल फतह अल बुरहान और दूसरे अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (RSF) के कमांडर मोहम्मद हमदान दगालो हैं। कुछ समय पहले तक ये दोनों सहयोगी थे। इस जोड़ी ने 2019 में सूडानी राष्ट्रपति उमर अल-बशीर को अपदस्थ करने के लिए एक साथ काम किया था और 2021 में भी सैन्य तख्तापलट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बाद में नागरिक शासन को बहाल करने की योजना के दौरान सेना में आरएसएफ को एकीकृत करने के लिए बातचीत के दौरान दोनों के बीच विवाद और तनाव उत्पन्न हो गया। अब दोनों के बीच इस बात पर विवाद है कि नए पदानुक्रम में कौन सीनियर होगा और कौन उसके मातहत होगा? इसी वर्चस्व की लड़ाई में दोनों सैन्य कमांडर के बीच खूनी संघर्ष छिड़ चुका है।अब्दुल फतह अल बुरहान मूल रूप से सूडान का नेता है। बशीर के पतन के समय बुरहान सेना के महानिरीक्षक थे। उनका करियर दागलो के समानांतर रहा है। अब्दुल फतह अल बुरहान के नेतृत्व वाली सेना ने एक बयान में आरएसएफ के साथ बातचीत से इनकार करते हुए और इसे भंग करने की बात कही है और इसे ‘बागी मिलिशिया’ करार दिया है। अर्द्धसैनिक समूह ‘आरएसएफ’ ने सशस्त्र बलों के प्रमुख को ‘अपराधी’ बताया है। वर्ष 2021 में देश में तख्तापलट हुआ था और अब इस तरह के संकेत मिल रहे हैं कि दोनों केे बीच संघर्ष जारी रह सकता है। जनरल मोहम्मद हमदान दागलो की अगुवाई वाले आरएसएफ का सशस्त्र बलों में एकीकरण को लेकर सहमति न बन पाने की वजह से यह तनाव उत्पन्न हुआ है।
जब दो साल पहले क्रांति हुई थी तो लोगों को उम्मीद थी कि उन्हें शीघ्र लोकतंत्र मिलेगा लेकिन अब उन्हें भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है। लोग जश्न मना रहे थे कि उन्हें दूसरा सैन्य राज नहीं चाहिए, उन्हें भारत की तरह लोकतंत्र चाहिए लेकिन आर्थिक संकट ने हालात बिगाड़ दिए। बढ़ती महंगाई ने लोगों का जीना दूभर कर दिया। देश के बिगड़ते हुए हालातों से करंसी कमजोर हुई। रोटी और ईंधन की लगातार कमी होने लगी। तख्ता पलट के बाद अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और लोन राहत में अरबों डॉलर रुक गए। विकास परियोजनाओं को रोक दिया गया। राष्ट्रीय बजट पर दबाव डाला गया जिससे मानवीय स्थिति बिगड़ गई। रोटी को लेकर शुरू हुआ संघर्ष गृह युद्ध में बदल गया। संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना अभियानों के तहत भारतीय सेना के दस्ते सूडान में तैनात है जिन्होंने मानवीय सहायता मिशन में सराहनीय काम किया है। कई देशों ने सूडान में सभी पक्षों से संयम बरतने, लड़ाई रोकने और बातचीत के माध्यम से संकट को समाप्त करने की दिशा में काम करने का आह्वान किया है। लोगों को गोलियों और लड़ाई की गहरी परेशान करने वाली आवाजों से जागना होगा। सवाल यही है कि क्या दो जनरलों के बीच अहंकार की लड़ाई समाप्त होगी अगर संघर्ष जारी रहा तो एक आैर मानवीय संकट पैदा हो जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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