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तुम एक पैसा दोगे… मैं तुम्हें!

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देखिये किस दिलनशीं अदा से पेट्रोल और डीजल के भावों को तय किया जा रहा है कि पूरे हिन्दोस्तान को बरतानिया सरकार के वे दिन आ रहे हैं जब हर शहरी को अंग्रेज बहादुर हुक्म देते थे कि तुम चाहे जितनी भी गुरबत में तड़पते रहो मगर सरकार का खजाना भरा रहना चाहिए। क्या कयामत है कि हिन्दोस्तान की सड़कों पर टैक्सी, तिपहिया स्कूटर या टेम्पो चलाकर अपने परिवार की गुजर-बसर करने वाला आदमी हर रात को यह दुआ करके सोता है कि ‘‘या मेरे मौला डीजल और पेट्रोल के भाव को वहीं थामे रखना जहां उसे आज छोड़ कर आया हूं’’ मगर देखिये तेल कम्पनियों की फराखदिली कि 16 दिन लगातार दाम बढ़ाने के बाद दाम घटाया भी है तो उस एक पैसे के सिक्के में जो अब मुल्क में चलता ही नहीं है।

लोग सोच रहे हैं कि इससे बेहतर हो कि किसी न किसी सूबे में 12 महीनों चुनाव होते रहें जिससे कम से कम उन दिनों तो पेट्रोल अपनी जगह कायम रह सके ! ‘‘जिस सरकार के मन्त्री लोगों को तकलीफ में भी अपनी तकरीरें पूरी तसल्ली के साथ देते रहते हैं वे जनता के नुमाइंदे किस बिना पर हो सकते हैं’’, यह मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने सत्तर के दशक में तब कहा था जब इन्दिरा गांधी की हुकूमत के दौरान पेट्रोल का भाव कुछ पैसे बढ़ा दिया गया था। वह नजारा कैसे भूला जा सकता है जब श्री वाजपेयी संसद भवन में बैलगाड़ी पर बैठकर आये थे मगर क्या समां बनाया जा रहा है कि लोगों की छाती पर बैठकर मूंग दली जा रही है और हर मन्त्री कह रहा है कि राम-राम बोलते रहो और दाल पिसवाते रहो वरना और महीन पीस दूंगा। किस अन्दाज में एेलान किया जा रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था ये निकली सबसे आगे वो निकली सबसे ऊपर और आम आदमी सोच रहा है कि उसकी जेब का वजन बिना बढे़ ही यह कमाल कौन सी जादूगरी से हो रहा है? वह हैरान है कि हे राम तुम्हारा यह कौन-सा चमत्कार है कि मन्त्री को गूलर के पेड़ पर ‘फूल’ दिखाई पड़ रहा है और सन्तरी को ‘सूखा पत्ता’ ! लोग सोच रहे हैं कि उनकी मोटरें चमकती-चिकनी सड़कों पर दौड़ेंगी और तब तक सरकार बजाय पेट्रोल के पानी से उन्हें चलाने की टैक्नोलोजी ले आएगी।

क्योंकि भारत एक साथ एक सौ से भी ज्यादा राकेट छोड़ रहा है मगर क्या जज्बा है इस मुल्क के मुफलिस आदमी का कि वह मांग कर रहा है कि खुदा के वास्ते मुझे उस एक पैसे के सिक्के को लाकर दे दो जिसे नोटबन्दी से भी पहले चलन से बाहर कर दिया गया था ! अपने लिए हजारों करोड़ रु. की योजनाएं चलाने की बातें सुनकर वह सरकार से एक पैसा मांग रहा है ? है कोई खुदा का बन्दा जो उसकी यह फरियाद पूरी करे। दरअसल हम भूल जाते हैं कि यह वह लोकतन्त्र है जो हर पांच साल के लिए अपने सरमाये की हिफाजत की जिम्मेदारी उन नौकरों के जिम्मे सौंपता है जो लोगों को उनकी जानो-माल की हिफाजत का यकीन दिलाते हैं। बदले में अगर उसे कोई खैरात बांट कर भुलावे मंे रखने की तरकीब भिड़ाता है तो वे लोग ही पकड़ लेते हैं जिन्होंने अपने सरमाये की मुख्तारी बख्शी थी। यह दीवार पर लिखी हुई इबारत है जिसे किसी और ने नहीं बल्कि खुद गांधी बाबा ने इस मुल्क के लोगों को सिखाया था कि ‘‘एे हिन्दोस्तानियो तुम्हारे हाथ में एेसे निजाम को मुकम्मिल करके जा रहा हूं जिसमें गरीब को खैरात नहीं बल्कि उसका हिस्सा दिया जाएगा और इस तरह​दिया जायेगा कि वह उसका कानूनी हक बने। सवाल पूछा जाना चाहिए कि जब लोगों के पास पेट्रोल खरीदने के पैसे ही नहीं होंगे तो भारत का विकास किसके बूते पर होगा? मगर देखिये हमारी हिम्मत हम गरीबों की जेब ढीली करके ऊंची-ऊंची मूर्तियां खड़ी करके कह रहे हैं अगर जेब में कुछ पैसे बचे हैं तो इन पर चढ़ाओ और अपने भारतीय होने पर गर्व करो।

पेट्रोल क्या है वह भी तो ईश्वर की धरती को बख्शी हुई बख्शीश है। उसे तो दूसरे मुल्कों से मंगाना पड़ता है। अपने में वह जज्बा पैदा करो कि पेट्रोल की नदियां इसी सरजमीं में नमूदार हो जायें। 125 करोड़ देशवासी अगर अहद कर लें तो पहाड़ तोड़ कर नदियों का रुख बदल सकते हैं, यह तो सिर्फ पेट्रोल है ! मेहनत से क्या घबराना? अंग्रेजों ने हमसे कितनी मेहनत करवाई। इसके बावजूद हमने आजादी तो हासिल कर ली। यह बाजार की अर्थव्यवस्था है। पेट्रोल का भाव दूसरे मुल्कों में तय होता है, सरकार तो बस नाम का नजराना वसूल करती है। इस नजराने पर भी विपक्षी नजर लगा रहे हैं ? कितनी बेइंसाफी है ! एक तरफ शहरों में मोटरों की तादाद बे-हिसाब बढ़ रही है और दूसरी तरफ पेट्रोल का रोना रोया जा रहा है। इस मसले का हल भी तो कोई ढूंढेगा?

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