विपक्षी कांग्रेस और माकपा ने शुक्रवार को चुनावी बॉंड पर उच्चतम न्यायालय की ओर से पारित अंतरिम आदेश का स्वागत किया जबकि सत्ताधारी भाजपा ने कहा कि वह अंतिम फैसले का इंतजार करेगी।
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक फंडिंग पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए कई शर्तें लगा दी। अदालत ने सभी राजनीतिक पार्टियों को निर्देश दिया कि वे चुनावी बॉंड के जरिए प्राप्त चंदे की रसीद और चंदा देने वालों की पहचान का ब्योरा एक सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को सौंपें।
इस आदेश पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए भाजपा प्रवक्ता और उच्चतम न्यायालय के वकील नलिन कोहली ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय का जो भी आदेश है, उसका पालन होगा और इसका हमेशा से पालन किया जाता रहा है।’’
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उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक सरकार की ओर से उठाए गए मुद्दों का सवाल है, उन्हें विचार के लिए अदालत के समक्ष रखा गया है। और हम अंतिम फैसले का इंतजार करेंगे।’’
आदेश का स्वागत करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा, ‘‘बॉन्ड का यह कथित भ्रष्ट आविष्कार और कुछ नहीं बल्कि भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे पर सीधा प्रहार है।’’
कांग्रेस ने कहा कि उसने हमेशा कहा है कि राजनीतिक फंडिंग और शासन में पारदर्शिता निश्चित तौर पर होनी चाहिए और एक समान स्तर सुनिश्चित कर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराए जाने चाहिए।
पार्टी ने उम्मीद जताई कि उच्चतम न्यायालय मामले की जड़ तक जाएगा और उन सीलबंद लिफाफों को खोलेगा जिनमें चुनावी बॉंड के जरिए चंदा देने वालों के नामों की सूची होगी।
सिंघवी ने पत्रकारों से कहा, ‘‘भाजपा को बताना चाहिए कि उसके पास पैसों की बाढ़ कहां से आ गई….95 फीसदी चुनावी बॉंड एक पार्टी को मिले हैं। एक ही पार्टी का वित्तीय वर्चस्व एक समान स्तर की अवधारणा को नष्ट कर देता है।’’
उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुए माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार के रुख को ‘‘ध्वस्त’’ कर दिया है।
येचुरी ने कहा कि अदालत ने साफ कर दिया है कि पारदर्शिता चुनावी फंडिंग का बुनियादी सिद्धांत है। लोगों को यह जानने का हक है कि किस पार्टी को किसने कितने रुपए दिए।