आस्था, विश्वास और संस्कृति के महासंगम तीर्थराज प्रयाग में माघ मेला के अंतिम स्नान पर्व ‘‘महाशिवरात्रि’’के अवसर पर त्रिवेणी नदियों के तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।
संगम किनारे दूधिया रोशनी के बीच सुबह चार बजे से ही श्रद्धालुओं जिनमें महिलायें, पुरूष, युवा, बच्चे और दिव्यांग शामिल थे ने त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाने के साथ ही ॐ नम: शिवाय,हर-हर महादेव, हर हर-बम बम के जयकारे लगाएं। तट पर किसी को गंगा मइया का स्मरण करते हुए देखा गया।
मेला प्रशासन के अनुसार, महाशिवरात्रि पर करीब पांच से 10 लाख के बीच श्रद्धालुओं के पुण्य की डुबकी लगाने की संभावना है। उन्होंने बताया कि 10 बजे तक ढाई लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया। मेला क्षेत्र में आठ मजिस्ट्रेट के साथ सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिस बल भी तैनात किया गया है।
जल पुलिस प्रभारी कडेदीन यादव ने बताया कि सभी स्नान घाटों पर 80 गोताखोरों के साथ जल पुलिस भी मौजूद हैं। संगम में बेरीकेडिंग किया गया है,जिससे स्नानार्थी उसके पार नहीं जाएं। बावजूद इसके जल पुलिस लगातार इस पर चौकसी बरत रही है। उन्होने बताया कि स्नान कुशल पूर्वक हो रहा है,अभी तक किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना का कहीं से कोई समाचार नहीं मिला है।
गौरतलब है कि सुबह हल्की बूंदाबांदी और तेज हवाओं के बीच श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगानी शुरू कर दी। ऐसा लग रहा था की श्रद्धालओं की आस्था सर्द हवाओं पर भारी पड़ती नजर आ रही हैं। आखिरी स्नान होने के कारण घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ नजर आई।
त्रिवेणी में कुछ लोग पुण्य की डुबकी लगा रहे थे तो कुछ महिलाएं स्नान के बाद घाट पर ही सूर्य को जल चढ़ती दिखीं। श्रद्धालु महिलाओं ने परिवार की खुशहाली के लिए गंगा मइया को दूध, पान, फूल अर्पण किए।
श्रद्धा से भरपूर श्रद्धालुओं का कारवां सिर पर गठरी और कंधे पर कमरी रखे प्रयागराज की सड़कों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों से संगम क्षेत्र की ओर खरामा-खरामा लगातार बढ़ता जा रहा है। सिर पर गठरी का बोझ रखे दीन-दुनिया से बेपहरवाह श्रद्धालुओं का लक्ष्य त्रिवेणी में परिवार और सगे संबंधियों के लिए आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करना है।
दूर दराज से पहुंचे त्रिवेणी में एक साथ वृद्ध, युवा, बच्चे, दिव्यांग, अमीर-गरीब, रोगी को एक साथ स्नान करते देख अनेकता में एकता के साथ लघु भारत और विभिन्न संस्कृतियों का बोध होता है। पौष पूर्णिमा 10 जनवरी से शुरू हुए 43 दिनों तक चलने वाले माघ मेला में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के विस्तीर्ण रेती पर बसे रंग बिरंगे तंबुओं के आध्यात्मिक नगरी में आध्यात्मिक बयार बह रही थी। माघी पूर्णिमा स्नान के बाद कल्पवासी साधु-महात्मा एवं संत वापस लौट गये और बचे कुछ संत-महात्मा महाशिवरात्रि स्नान के बाद मेले की छटा समाप्त हो जाएगी।