शास्त्रों के मुताबिक पितृ पक्ष में श्राद्घ कर्म करने के लिए दिन में सिर्फ 2 ही समय जरूरी बताएं गए हैं। पितरों के प्रति श्रद्घा अर्पित करने का भाव ही श्राद्घ है। वैसे तो हर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन पितरों के लिए श्राद्घ तर्पण आदि कर्म किए जा सकते हैं।
लेकिन श्राद्घ कर्म में आपके पितृ ज्यादा प्रसन्न हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती है। ऐसा कहा जाता है कि पितृ पक्ष में इन 2 वक्त पर ही श्राद्घ कर्म करने चाहिए। तो आइए आप भी जान लीजिए दिन में श्राद्घ करने के लिए कौन से हैं वो दो निर्धारित समय।
श्राद्घ के लिए दिन में सबसे श्रेष्ठ समय एंव श्राद्घ के लिए दोपहर का कुतुप और रौहिण मुहूर्त श्रेष्ठ है। कुतप काल में किए गए दान का आपको अक्षय फल मिलता है।
1- कुतुप मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक।
2- रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से दिन में 1 बजकर 15 मिनट तक।
ऐसा बोला जाता है कि श्राद्घ पक्ष के 15 दिनों में जल से तर्पण जरूर करना चाहिए। क्योंकि चंद्रलोक के ऊपर और सूर्यलोक के पास पितृलोक है। वैसे पितृलोक में तो पानी की कमी होती है इसी वजह से जब जल से तर्पण किया जाता है तो उससे दिवंगत पितरों को तृप्ति मिलती है।
इन लोगों को करना चाहिए श्राद्घ कर्म
पिता का श्राद्घ पुत्र को करना चाहिए और एक से ज्यादा पुत्र होने पर बड़े बेटे को ही श्राद्घ करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी को श्राद्घ कर लेना चाहिए। पत्नी के न होने पर भाई भी श्राद्घ कर्म करने में सक्षम है।
इसे समय न करें श्राद्घ कर्म
कभी भी रात के समय में श्राद्घ न करें। क्योंकि रात्रि राक्षसी का समय है।
दोनों संध्याओं के वक्त भी श्राद्घकर्म नहीं करना चाहिए।