इंसान जो आज दिन रात की मेहनत कर रहा हैं वो किस लिए ताकि उसे दो वक्त की रोटी मिल सके और अपने सिर पर छत। इसलिए इंसान दिन रात एक करके मेहनत करता हैं और जैसे-तैसे पैसे जोड़-जोड़ कर अपना घर बनाने कि सोचता हैं। लेकिन क्या हो अगर हम आपसे कहे की एक ऐसा गांव हैं जहा लोग पेड़ो पर अपना जीवन यापन करते हैं? आप सोच रहे होंगे की ये क्या ही मज़ाक हैं लेकिन ये मज़ाक नहीं सच हैं!
और सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि ये लोग तो अपने बच्चों और जानवरों के साथ पेड़ों पर रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यंहा तक कि घरों में बड़े-बड़े सांप रहते है और उसके बीच ये लोग अपना जीवन बीता रहे होते हैं। ये कहानी है जिले के सबौर प्रखंड के शनतनगर बगडेर बगीचा की। दरअसल, जिले में यह बगीचा चिड़ियों के घोसलों के लिए नहीं बल्कि इंसानों के घोंसलें के लिए फेमस है।
लेकिन इनके ऊपर ये मजबूरी आई तो आई कैसे? दरहसल पूरा जिला बाढ़ की चपेट में आता रहता हैं जिसके कारण ये लोग पेड़ो पर रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इसके साथ ही कटाव भी जिले में होता है। कटाव पीड़ित अपना आशियाना ढूंढने में लग जाते हैं। बाबूपुर, रजनन्दीपुर बहुत बड़ा गांव हुआ करता था। जो धीरे धीरे गंगा के आगोश में समाते चला गया। लोग अपना ठिकाना ढूंढने लगे, तभी वहां के लोग शन्तनगर में आकर बस गए। यह इलाका निचली इलाका होने का कारण पूरी तरीके से डूब जाता है। यंहा के लोगों को जीवन यापन करना काफी दुर्लभ हो जाता है। न पीने का पानी, न शौचालय की व्यवस्था और न खाने का समान कैसे कटती होगी जिंदगी ?
15 सालो से ऐसे बिता रहे हैं जीवन
ये वाकई एक हैरान कर देने वाली बात हैं कि कोई कैसे पेड़ो पर अपना जीवन व्यतीत कर सकता हैं लेकिन ये सच भी हैं कि इन लोगो को ये सब सहन करना पड़ रहा हैं। करीब 15 साल से इनकी जिंदगी ऐसे ही कट रही है। हर साल अपना नया आशियाना बनाते हैं, हर साल बाढ़ में टूट जाता है। गांव के लोगों ने बताया कि अगर हम लोगों को सरकार कहीं जमीन दे दे तो हम लोग किसी तरह मकान बना कर रहेंगे।
धीरे-धीरे घौंसले भी हो रहे हैं खत्म
इस बार तो मानो इनके लिए और भी तूफ़ान गिर पड़ा हो। लगातार आने वाली इस बारिश और बाढ़ ने इनसे इनका ये आशियाना भी छीनने की तैयारी कर ली हैं। यंहा के लोग 13 फीट ऊंची मचान बनाने में लग गए हैं। धीरे धीरे अपने समानों को सुरक्षित जगह पर ले जाने लगे हैं। गांव की महिला अनिता देवी ने बताया कि पानी आते ही कष्टदायक जिंदगी हो जाती है, यंहा तक की कोई सहारा नहीं होता है। सरकार के तरफ से नाव तक कि व्यवस्था नहीं की जाति है। हम लोग चादर का नाव बनाते हैं। उससे आना जाना होता है, लेकिन हमेशा डर बना रहता है। चादर का नाव तेज धार में जाने पर बह जाएगा, लेकिन फिर भी उस पर सफर करना पड़ता है। अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो उसका ही सहारा लेना पड़ता है। कई बार खुले आसमान के बीच अपना समय व्यतीत करना पड़ता है। बारिश में बोरी का सहारा लेकर हम लोग रहते हैं। उन्होंने सरकार से पूरी व्यवस्था की मांग की है ताकि बाढ़ में कोई समस्या न हो।