दिवाली पर दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेजों में शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलने का मामला सामने आया है। इस मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स मांग कर रहे हैं कि, ‘यूजीसी’ दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेजों के संबंध में कोई सख्त एवं निर्णायक फैसला ले। दिल्ली विश्वविद्यालय के यह सभी कॉलेज दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने बयान दिया है कि, यह दिवाली कॉलेजों के शिक्षकों के लिए काली दीवाली थी।
कई महीनों से नहीं मिला है वेतन
‘डूटा’ अध्यक्ष ‘राजीब रे’ ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के इन कॉलेजों में पढ़ाने वाले प्रोफेसर्स, शिक्षकों एवं गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की स्थिति को लेकर बार-बार दिल्ली सरकार एवं प्रशासन को स्मरण कराया गया था।’डूटा’ का कहना है कि डीयू के इन 12 कॉलेजों के कर्मचारियों के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण अवसर है। इन कॉलेजों को दिल्ली सरकार द्वारा 100 प्रतिशत वित्त पोषित किया जाता है, और इसी वित्त पोषित से उन्हें वेतन मिलता है। दिल्ली विश्वविद्यालय की इन कॉलेजों में अब स्थिति यह है कि यहां कई महीनों से वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। ‘डूटा’ के मुताबिक बार-बार विरोध और अनुस्मरण के बावजूद इन कर्मचारियों की देखभाल के लिए सरकार या प्रशासन कोई उचित कार्रवाई नहीं कर रहा है।
सरकार द्वारा अनुदान रोकने से नहीं मिला है वेतन
‘डूटा’ के सचिव राजिंदर सिंह ने बताया कि, टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ को समझ नहीं आ रहा है कि बार-बार वेतन रुकने के कारण इस बार-बार होने वाले संकट से कैसे निपटा जाए। दिल्ली सरकार द्वारा अनुदान रोकने के कारण वेतन में होने वाला विलंब शर्मनाक और निंदनीय है। ‘डूटा’ का कहना है कि एक और सरकार एवं विश्वविद्यालय प्रशासन इन कॉलेजों के कर्मचारियों का हितैषी होने का दावा करती है। वहीं इस प्रकार से महीनों वेतन का भुगतान न करना इन कॉलेजों के कर्मचारियों के बुनियादी मानवाधिकार पर एक बड़ा हमला है।
शिक्षा मंत्री पर नहीं पड़ा कोई असर
वेतन न मिलने पर शिक्षकों का कहना है कि, ‘डूटा’ द्वारा आयोजित की गई हड़ताल और मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र का भी मुख्यमंत्री एवं दिल्ली के शिक्षा मंत्री पर कोई असर नहीं पड़ा है। त्योहारों का मौसम खुशी और उल्लास का मौका होता है लेकिन दिल्ली सरकार को इन बेबस कर्मचारियों की कोई चिंता नहीं दिखती।
‘डूटा’ अध्यक्ष राजीब रे ने बताया कि ने 20 अक्टूबर को दिल्ली के नए कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह के साथ बैठक में उन्हें मामले से अवगत कराया गया था। कुलपति से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई थी। हालांकि इससे भी शिक्षकों को कोई राहत नहीं मिली है। राजीव का कहना है कि, दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित इन कॉलेजों में भारी अव्यवस्था है। खास तौर पर अनुदान को लेकर कोई नियम कायदे नहीं है। ऐसी स्थिति में यूजीसी को शिक्षकों एवं छात्रों के भविष्य के मद्देनजर तुरंत इन कॉलेजों का अधिग्रहण कर लेना चाहिए।