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तारिक अनवर का विद्रोह!

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श्री शरद पवार का सैद्धान्तिक विरोध करके श्री तारिक अनवर ने सिद्ध कर दिया है कि 1999 के लोकसभा चुनाव से पहले 1998 में उन्होंने श्री पवार के साथ ही जिस तरह अपनी मूल कांग्रेस पार्टी छोड़ी थी उसके पीछे राजनीति में वैचारिक मतभिन्नता को स्थापित करते हुए स्पष्ट लक्ष्यों को बिना किसी समझौते के प्राप्त करना था। यह स्वयं में विस्मयकारी है कि श्री अनवर जैसा शान्त और मृदु स्वभाव वाला व विवादों से दूर रहने वाला व्यक्ति अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष और जन्मदाता के विरुद्ध इतने तीखे तेवर दिखा सकता है कि वह सिद्धान्त के लिए न केवल पार्टी छोड़ दे बल्कि अपनी संसद सदस्यता से भी इस्तीफा देने की घोषणा कर दे जो उसे पार्टी की वजह से ही प्राप्त हुई थी।

राजनीति का जो वर्तमान में आपाधापी और गाली-गलौज का दौर चल रहा है उसमें श्री अनवर का यह निर्णय एक एेसे शीतल झोंके की तरह आया है जिससे राजनीति के आवरण से जरूर कुछ धूल हटनी चाहिए।  श्री अनवर ने कांग्रेस इस मुद्दे पर छोड़ी थी कि देश का प्रधानमन्त्री कोई भी एेसा व्यक्ति नहीं हो सकता जो मूल रूप से भारतीय न हो। तब श्री शरद पवार ने इस सिद्धान्त को लेकर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष स्व. पी.ए. संगमा को भी अपने साथ लिया था और इन तीनों बड़े नेताओं ने कांगेस पार्टी को छोड़कर नई राष्ट्रवादी कांग्रेस बनाने की घोषणा की थी। मामला यह था कि 1998 में स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार केवल एक वोट से गिरने के बाद नई वैकल्पिक सरकार कांगेस पार्टी के नेतृत्व में बनाने का दावा तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति के पास पहुंच कर स्वयं करने का फैसला किया था जबकि उस लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री शरद पवार थे।

श्रीमती गांधी के कदम से यह आभास हुआ था कि वह स्वयं प्रधानमन्त्री बनने की दौड़ में शामिल हैं परन्तु तत्कालीन राष्ट्रपति स्व. के.आर. नारायणन ने उनसे लोकसभा मंे आवश्यक बहुमत 272 सांसदों के समर्थन की फेहरिस्त मांगी थी, जो पूरी नहीं हो सकी थी। इसके बाद जो घटनाक्रम हुआ उसमें कांग्रेस पार्टी के भीतर ही यह मुद्दा खड़ा हो गया था कि क्या मूलरूप से विदेश में जन्म लेने वाली श्रीमती गांधी को प्रधानमन्त्री पद की दावेदारी करनी चाहिए थी? श्रीमती गांधी के विदेशी मूल का यह मसला इस कदर उछला कि तब स्वयं श्रीमती गांधी ने कांग्रेस पार्टी और राजनीति से उदासीन रुख रखकर घर बैठना उचित समझा था मगर तब तक श्री पवार श्री संगमा व तारिक अनवर के साथ पार्टी छोड़ने का ऐलान कर चुके थे।

उनका विरोध इसी बात पर था कि प्रधानमन्त्री के पद और भारतीयता में किसी प्रकार का समझौता नहीं हो सकता। हालांकि श्री पवार ने तब भी कहा था कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद पर यदि विदेशी मूल का व्यक्ति बैठता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है मगर श्री पवार के साथ तारिक अनवर व संगमा द्वारा कांग्रेस छोड़ने से पार्टी को भारी नुकसान हुआ था। हालांकि श्रीमती गांधी कुछ दिनों बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं द्वारा मनाने पर पुनः पार्टी का काम देखने लगी थीं और उन्होंने तभी अपना प्रसिद्ध वक्तव्य दिया था कि ‘‘मैं बहू भारत में ही बनी और विधवा भी यहीं बनी’’ मगर राष्ट्रवादी कांग्रेस एक पृथक इकाई बन चुकी थी मगर श्री तारिक अनवर ने राफेल लड़ाकू विमान मुद्दे पर जिस तरह श्री शरद पवार से विद्रोह किया है वह उनकी पार्टी के भीतर चल रहे द्वन्द को भी दिखाता है। श्री पवार विपक्षी एकता के बारे में भी कई बार यह बयान दे चुके हैं कि देश को इसकी सख्त जरूरत है मगर सबसे पहले उन्हें अपना घर ठीक करना चाहिए था।

श्री पवार का राफेल विमान सौदे में बयान इस वजह से बहुत मायने रखता है कि वह स्वयं एक सफल रक्षामन्त्री रह चुके हैं। अतः समझा जा सकता है कि वह इस विवादास्पद मामले में जो भी कहेंगे वह इसके विभिन्न पक्षों के अध्ययन व मनन के बाद ही कहेंगे। यदि तारिक अनवर ने उनके मत पर विद्रोह किया है तो राजनीति मंे इसे सतही तौर पर नहीं लिया जा सकता क्योंकि वह भी मनमोहन सरकार के दौरान यूपीए शासन में राज्यमन्त्री रह चुके हैं और उनका सियासत मंे लम्बा अनुभव है। इसके बावजूद यह पूरी तरह सैद्धान्तिक मसला है।

सिद्धांत वह होता है जिस पर अपने-पराये सभी एक समान रूप से तुल जाते हैं। इसमें व्यक्तिगत पसन्द या नापसन्दगी का सवाल नहीं होता बल्कि उन मूल प्रश्नों का हवाला होता है जिनके उत्तर अलग-अलग मिलते हैं। यदि श्री अनवर अपनी पार्टी के अध्यक्ष की राय से सहमत नहीं हैं तो उनका उस पार्टी में रहना जायज भी नहीं बनता है क्योंकि राजनीति का ढांचा उस जमीन पर ही खड़ा होता है जहां विचारों में सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं में समानता हो। यह तो श्री पवार को ही सोचना होगा कि जो व्यक्ति उनके साथ पिछले 19 सालों से कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़ा रहा उसने आखिरकार क्यों झटका मारा? सवाल यह नहीं है कि सही कौन है और गलत कौन है बल्कि असली सवाल यह है कि बेवफाई का सबब क्या है?

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