एससी-एसटी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट की रोक वाले फैसले के खिलाफ सोमवार को कई राज्यों में हुई हिंसा के मामले में अब बड़े स्तर पर कार्रवाई हुई। मप्र, उप्र, पंजाब व हरियाणा में ज्ञात और अज्ञात उपद्रवियों के खिलाफ न सिर्फ मामला दर्ज किया गया है बल्कि गिरफ्तारियां भी हुई हैं। मप्र के भिंड में हिंसा के दूसरे दिन एक शव मिला है। इस तरह से भारत बंद के दौरान हुई हिंसा में मरने वालों की कुल संख्या 12 हो गई है।
आपको बता दे कि बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती आज भले ही एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित आंदोलन के समर्थन कर रही हों। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर मायावती ने अपने शासन के दौरान न सिर्फ इस एक्ट को संशोधित किया था, बल्कि इस कानून को हल्का भी किया गया था। जब मायावती यूपी की सीएम थीं तब उनकी सरकार ने ऐसे ही दो आदेश जारी किए थे जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के दुरुपयोग को रोकने के लिए थे। सबसे अहम बात यह है कि यही संशोधित कानून उत्तर प्रदेश में आज भी लागू है।
मंगलवार को 2007 का शासनादेश सोशल साइट्स पर वायरल हो गया। आज भाजपा भले ही इस मुद्दे पर बसपा पर कटाक्ष कर रही हों लेकिन, 2007 में उन्होंने इस शासनादेश का स्वागत किया था। आपको बता दें कि तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा जारी ये आदेश इस बात पर केंद्रित थे कि एक्ट के तहत केवल शिकायत के आधार पर कार्रवाई न हो बल्कि प्राथमिक जांच में आरोपी के प्रथम दृष्ट्या दोषी पाए जाने पर ही गिरफ्तारी हो।
20 मई 2007 को तत्कालीन मुख्य सचिव शंभु नाथ की तरफ से जारी किए गए पत्र में इस एक्ट के तहत पुलिस से दर्ज की जाने वाली शिकायतों का जिक्र था। यह निर्देश मायावती के चौथी बार सीएम बनने के महज एक हफ्ते के भीतर ही जारी हुआ था। इस निर्देश में साफ किया गया था कि केवल हत्या और रेप जैसी जघन्य वारदात ही इस एक्ट के तहत दर्ज होनी चाहिए। तत्कालीन मुख्य सचिव ने एक सरकारी आदेश निकालकर अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम में कुछ बड़े बदलाव किए थे, जिसके तहत हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में इस एक्ट को लगाने से पहले एसपी या एसएसपी को अपनी विवेचना करनी होती है।
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