सदियों से प्राकृतिक आपदाएं मनुष्य के अस्तित्व के लिए चुनौती रही हैं। हिमस्खलन, भूस्खलन, भूकम्प, ज्वालामुखी, सुनामी, चक्रवाती तूफान, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाएं बार-बार मनुष्य को चेतावनी देती हैं। वर्तमान में हम प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे संतुलन बिगड़ रहा है। इन आपदाओं को प्रकृति का प्रकोप या गुस्सा भी कहा जाता है। ऐसी आपदाओं के कारण भारी मात्रा में जान-माल की हानि होती है। 1999 में ओडिशा में महाचक्रवात आया था जिसमें 10 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। 2001 में गुजरात भूकम्प को कोई भूल नहीं सकता, इसमें 20 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। इसमें अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, गांधीनगर, कच्छ और जामनगर में काफी नुक्सान पहुंचा था। 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में बादल फटने से आई प्राकृतिक आपदा का पूरा देश गवाह रहा है। प्राकृतिक आपदा अपने साथ बहुत सारा विनाश लेकर आती है। इसमें जन-धन का भारी नुक्सान होता है। मकान, घर, सड़कें और पुल टूट जाते हैं। अरबों रुपए का नुक्सान हो जाता है।
बाढ़, मूसलाधार बारिश, ओलावृष्टि जैसी आपदा सभी फसलों को नष्ट कर देती है जिसमें खाद्यान्न का संकट पैदा हो जाता है। प्राकृतिक आपदाएं अपने पीछे महामारी छोड़ देती हैं। हाल ही में केरल में भयंकर वर्षा से व्यापक तबाही हुई, हजारों लाेग बेघर हो गए। कई शहर अस्त-व्यस्त हो गए। अब नवनिर्माण के लिए बहुत धन खर्च होगा। अब तितली तूफान आेडिशा और आंध्र प्रदेश से टकराकर पश्चिम बंगाल की आेर बढ़ गया लेकिन यह संतोष का विषय है कि ओडिशा राज्य ने चक्रवाती तूफान का सामना करना सीख लिया है। 1999 में ओडिशा में 260 किलोमीटर प्रतिघंटे से चलने वाली हवाओं ने जमकर तबाही मचाई थी। यह ‘सुपर साइक्लोन’ था आैर इसका मुकाबला करने के लिए आेडिशा में कोई तैयारी नहीं थी। एक ही रात में कई गांवों का नामोनिशान मिट गया था और लाखों लोग बेघर हो गए थे। मरने वाले 10 हजार लोगों में अकेले जगतपुर जिले में 8 हजार मौतें हुई थीं। इस बार ओडिशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ‘तितली’ नामक तूफान का सामना कर रहे हैं जिसे बहुत ही ज्यादा तीव्र तूफान के तौर पर वर्गीकृत किया गया।
तितली की तीव्रता ‘साइलिन’ से काफी कम रही लेकिन आेडिशा में इस चक्रवाती तूफान से केवल एक मौत हुई जबकि आंध्र प्रदेश में 7 लोगों की मौत हुई है। ओडिशा ने जो आपदा प्रबन्धन किया, उसकी सराहना करनी पड़ेगी। ‘तितली’ तूफान की जानकारी आपदा प्रबन्धन विभाग को बहुत पहले मिल चुकी थी। सरकार और स्थानीय प्रशासन और आपदा प्रबन्धन विभाग ने बहुत पहले ही 3 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था। आईआईटी खड़गपुर की मदद से 900 के आसपास तूफान राहत शिविरों की स्थापना की थी। 1999 के तूफान से सबक लेते हुए यह तय किया था कि आने वाली हर प्राकृतिक आपदा से मुकाबला किया जाए। तटवर्ती इलाकों में बने मकानों को मजबूत बनाया गया ताकि उनकी दीवारें और छतें तेज हवाओं का सामना कर सकें। समुद्री इलाकों में 122 सायरन टॉवर लगाए गए और समय-समय पर तूफान की चेतावनी दी गई। लोगों को शरण देने के 17 हजार विशेष केन्द्र बनाए गए। मछुआरों को लगातार मौसम विभाग ने चेतावनी की व्यवस्था की गई।
विभाग ने समय-समय पर अलर्ट जारी करने की व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया का जमकर सहारा लिया। एनडीआरएफ की टीमों को पहले से ही तैनात कर दिया गया था। समुद्र की एक मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई की लहरों में एक नाव पर 27 मछुआरों के फंसे होने की सूचना पाकर एनडीआरएफ की टीम ने सभी को सुरक्षित निकाल लिया। ओडिशा के बंगाल की खाड़ी से सटे होने की वजह से ओडिशा काे तूफानों से लगातार सामना करना पड़ रहा है इसलिए उसने इनका सामना करने के लिए व्यापक योजना तैयार की थी। इस योजना के तहत तटवर्तीय इलाकों में सरकारी स्कूलों के भवनों को इस तरह पुनर्निर्मित किया गया ताकि वह जरूरत पड़ने पर राहत शिविर के रूप में इस्तेमाल किये जा सके। प्राकृतिक आपदाओं से भारत को 1998-2017 यानी 20 वर्ष में 80 लाख डॉलर का नुक्सान हुआ है।
संयुक्त राष्ट्र की आपदा से जुड़ी रिपोर्ट में यह आंकड़े सामने आए हैं। सबसे ज्यादा नुक्सान वाले देशों में भारत का चौथा नम्बर है। पिछले 20 वर्षों में जलवायु सम्बन्धी आपदाओं से 13 लाख लोगों की मौत हुई और 440 करोड़ लोग बेघर हुए। भारत की प्राकृतिक संरचना में नदियों, पर्वतों का बहुत महत्व है लेकिन मानव ने हमेशा प्रकृति से खिलवाड़ किया है। बेहतर यही होगा िक ओडिशा की तरह अन्य राज्य भी आपदा प्रबन्धन की पूर्ण व्यवस्था करें। आपदाएं तो आती रहेंगी लेकिन हमें भी ऐसी व्यवस्था करनी होगी ताकि नुक्सान कम से कम हो। आपदा से पूर्व और आपदा के बाद का प्रबन्धन अन्य तटवर्ती राज्य ओडिशा से सीख सकते हैं। यह प्रबन्धन केन्द्रीय स्तर से लेकर जिला प्रशासन तक होना चाहिए।