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‘कोराेना कैरियर’ न बनें जमाती !

भारत में तबलीगी जमात जिस तरह ‘कोरोना कैरियर’ की भूमिका निभाने पर अड़ी हुई है, उसे देखते हुए केन्द्र सरकार को अपने उन अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए जो बाबा साहेब अम्बेडकर के बनाये गये संविधान ने इसे प्रदान किए हैं लेकिन आश्चर्य इस बात का है

भारत में तबलीगी जमात जिस तरह ‘कोरोना कैरियर’ की भूमिका निभाने पर अड़ी हुई है, उसे देखते हुए केन्द्र सरकार को  अपने उन अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए जो बाबा साहेब अम्बेडकर के बनाये गये संविधान ने इसे प्रदान किए हैं लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि वे लोग कहां सोये पड़े हैं जो खुद को खुदा का बंदा बताकर मजहब की आड़ में पानी पी-पी कर खून बहाने का करतब किया करते थे और मोदी सरकार की बखिया उधेड़ा करते थे? आश्चर्य इस बात का है कि भारत में  बड़ी बेशर्मी के साथ ये जमाती कोरोना वायरस का कैरियर बनने के लिए धर्म की आड़ लेकर देश में कोरोना को लेकर दहशत फैलाना चाहते थे और अब उनकी इस करतूत का पता चल गया तो इसी धर्म की चर्चा छेड़ दी गई। 
भगवान या खुदा ने तो इंसान को एक रहना सिखाया है लेकिन आश्चर्य इस बात का है ​िक अब खुद को जमाती बताने वाले लोग अगर क्वारंटाइन के दौरान उनके इलाज में लगे डाक्टरों पर भी थूकते हैं या फिर नर्सों से दुर्व्यवहार करते हैं तो इसे क्या कहेंगे? और भी ज्यादा लज्जाजनक बात यह है कि ये जमाती सरे फेहरिस्त अपने कपड़े उतार कर अपने इलाज की जगहों में गन्दगी कर सकते हैं तो उन्हें किस मुंह से इंसानी दर्जे में रखा जा सकता है? मगर इनकी हिम्मत देखिये कि जुर्म की गठरी सर पर उठाये घूमने वाले उत्तर प्रदेश के रामपुर शहर के अस्पताल में भर्ती ये जमाती डाक्टरों से खाने के लिए मुर्ग-मुसल्लम की बिरयानी की मांग कर रहे हैं ! लानत है पेट की एेसी भूख पर पर  जिसे अपने ही देश के गरीबों की भूख से कोई वास्ता नहीं है जो लाॅकडाऊन के चलते खैरात में बंटने वाली रोटी से अपने पेट की आग को ठंडा कर रहे हैं। 
तबलीगी जमातियों का मामला अब सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंच चुका है जहां इस संस्था पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की गई है। जिस संस्था को अपने देश की परवाह नहीं और इसमें रहने वाले लोगों के दुखों से कोई सरोकार नहीं तो उसे अपनी गतिविधियां जारी रखने की इजाजत किस आधार पर भारत के संविधान के तहत दी जा सकती है? हमारा संविधान बेशक इंसानियत की बुनियाद पर लिखा गया है मगर इसमें राष्ट्र हित और समाज हित से ऊपर किसी अनुच्छेद को नहीं रखा गया है। नागरिकों की स्वतन्त्रता और निजी गौरव को अक्षुण्य रखने के लिए भी जितने अनुच्छेद हमारे संविधान में हैं वे सभी इस राष्ट्र व समाज को मजबूत बनाने व वैज्ञानिक नजरिया अपनाने की गरज से ही हैं। धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार राष्ट्रीय हितों को दरकिनार करके नहीं दिया गया है बल्कि यह भी आवश्यक है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी भी हालत में हिंसक विचारधारा की पैरवी नहीं कर सकती। यह इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि किसी भी धर्म के ऐसे आदेश अगर कानून के ​िखलाफ जाते हैं तो उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसीलिए धर्म के ठेकेदारों को इसकी तकलीफ भी हो रही है। 
यही वजह है कि देश में किसी भी धर्म से जुड़ा व्यक्ति क्यों  न हो, उसे कानून का पालन करना ही होगा। जबकि उनके पारिवारिक मसलों के लिए अलग से ‘पर्सनल कानून’  है। इसलिए यह स्पष्ट है कि कोई भी व्यक्ति  किसी भी संगठन या ​िकसी भी धर्म का क्यों न हो वह कानून का पालन करने के लिए बाध्य है और सरकार की स्वास्थ्य सेवाएं अगर कोरोना जैसी बीमारी के इलाज के लिए उपलब्ध कराई गई हैं तो उसका विरोध नहीं किया जाना चाहिए। 
इन जमातियों को डाक्टरों की सलाह और अस्पतालों के कायदे-कानूनों को मानना पड़ेगा जिनके न मानने पर इनके खिलाफ फौजदारी कानूनों के तहत ही मुकदमे दर्ज होने चाहिएं। अस्पताल ​ किसी के रिश्तेदार का घर नहीं होता कि वहां जाकर मुंह मांगी खुराक मिल जाये। क्या कयामत बरपा रखी है इन जमातियों ने कि पहले ये कट्टरपंथी विचारधारा के समारोह में उस समय शामिल होते हैं जब पूरा देश कोरोना से लड़ने के लिए एक होकर घरों में एक-दूसरे से दूर रहकर भी मुहिम में लगा हुआ था। इधर इन लोगों के संरक्षक  विभिन्न राज्यों में फैल कर वहां की मस्जिदों में सुर​क्षित होना चाहते हैं। पुलिस और प्रशासन का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह सभी धर्मस्थलों में प्रवेश करके ऐसे  फरार जमातियों को पकड़ें और उन्हें कोरोना कैरियर बनने से रोकें। 
उन डाक्टरों का दर्द और हिम्मत तो देखिये जाे जानते हैं कि ऐसे लोगों में 75 प्रतिशत कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं और इसके बावजूद वे इनकी सेवा में लगे हुए हैं और ये  लोग हैं जो उनसे ही बदसलूकी कर रहे हैं! ऐसी बदसलूकी की सजा एक उदाहरण बन कर आने वाली नस्लों के लिए एक सबक होनी चाहिए। अजीब तमाशा बना रखा है इन सिरफिरे जमातियों ने कि एक तरफ कोरोना जैसे गुमशुदा वायरस से पूरा मुल्क और सरकार लड़ रही है और ये लोग दावत दे रहे हैं कि पहले हमसे लड़ो–हम हैं कोरोना कैरियर। मगर क्या किया जाये, धर्म के नाम पर आजादी के बाद से हिन्दोस्तान में जिस तरह मुसलमानों को मजहबी दायरे में सीमित रख कर वोट बटोरने की  रणनीति को भिड़ाया गया उसी का परिणाम है कि जमाती इस तरह का व्यवहार कर रहे हैंः
 ‘‘तुमसे बेजा है मुझे अपनी तबाही का गिला 
 इसमें कुछ शायबा-ए-खूबी-ए तकदीर भी था।’’ 

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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