अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा का विश्लेषण करने के कई तरीके हो सकते हैं। बहुसंख्यक भारतीयों की नजर में यही है कि डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा अब तक के किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा के मुकाबले कहीं ज्यादा सफल रही। यह यात्रा भारत के लिहाज से ही नहीं बल्कि अमेरिका के नजरिए से भी काफी सफल रही। अगर पंजाबी में ट्रम्प की यात्रा का विश्लेषण करना हो तो एक वाक्य ही काफी है। वह है ‘खुश कर दित्ता।’ अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम के मंच से खड़े होकर उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अपनी धरती से आतंकवाद को मिटाना होगा।
भारत अमेरिका से ऐसी ही अपेक्षा रखता था। उनके भाषण की दो पंक्तियां गौर करने वाली हैं। उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद की धमकियों से अपने लोगों की रक्षा करने के लिए काम कर रहे हैं और प्रत्येक देश को सुरक्षित और नियंत्रित सीमा का अधिकार है। इन पंक्तियों का अर्थ निकाला जाए तो यह माना जा सकता है l ट्रम्प ने बिना नाम लिए सीएए का समर्थन कर दिया है। सीएए का विरोध करने वाले उपद्रव कर चाहते थे कि ट्रंप इस पर कुछ बोलें लेकिन यहां तो कुछ और ही कहानी बयां हुई है। ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सराहना करते हुए जिस तरह से भारत और अमेरिका के समान लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लेख किया वह अपेक्षा के अनुकूल है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत और अमेरिका एक-दूसरे के सहयोगी के रूप में जाने जाते हैं लेकिन ट्रंप ने न केवल मोदी के परिश्रम और सफलता की सराहना की बल्कि सख्त वार्ताकार भी बताया।
यह दोनों नेताओं का एक-दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान को दर्शाता है।कोई वक्त था जब अमरीका पाकिस्तान पर नेमतें बरसाता था। जब भी अमरीका के शीर्ष नेता भारत आते तो पाकिस्तान जाना उनकी मजबूरी होता था। अमरीकी नेतृत्व पाकिस्तान का सच जानते हुए भी उसकी डालरों से मदद करता रहा। अब परिदृश्य बदल चुका है। अब पाकिस्तान अमेरिका की मजबूरी नहीं रहा। 20 मार्च, 2000 को जब तत्कालीन अमेरिका राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत आये थे तो उनका भारत प्रेम उमड़ा था। इसका सीधा कारण यही था कि क्लिंटन यह सच जान चुके थे कि विश्व में आतंकवाद का असल पोषक पाकिस्तान है।
जो क्लिंटन राजस्थान के गांव में महिलाओं के साथ डांस करते रहे थे, वह कितनी सुरक्षा में पाकिस्तान गए, इस बात की तो कल्पना भी नहीं की जा सकी। बिल क्लिंटन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में अपने एयरफोर्स वन के बड़े जहाज की बजाय सुरक्षा कारणों से छोटे एस्कार्ट विमान से उतरे थे। वह किस कार में सवार हुए, इसका पता तो पाक की सुरक्षा एजैंसियों को भी नहीं चला था। कुछ घंटों में ही क्लिंटन पाकिस्तान से रवाना हो गए थे। काश! अमेरिकी नेतृत्व उस समय से ही पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाना शुरू कर देता तो शायद 9/11 का आतंकवादी हमला नहीं होता लेकिन जार्ज डब्ल्यू बुश ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में आतंकवाद की खेती करने वाले पाकिस्तान को अपना सहयोगी बना लिया। इसमें कोई संदेह नहीं कि ट्रम्प की यात्रा का उद्देश्य कारोबारी रहा।
अब सवाल यह है कि ट्रम्प के दौरे से भारत को क्या मिला? भारत को जो भी मिला वह काफी समग्र मिला। तीन अरब डालर का रक्षा समझौता हुआ है जिसमें अपाचे हैलिकाप्टर से लेकर रक्षा उपकरण शामिल हैं। ड्रग तस्करी रोकने के लिए समझौता हुआ। अमेरिका ने भारत की ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ा है। 5जी नैटवर्क पर भी बातचीत हुई। बड़ी व्यापार संधि का रोड मैप तैयार करने पर भी सहमति बन गई। इसके लिए दोनों देश बातचीत करेंगे और व्यापार के लिए नियमों को अमली जामा पहनायेंगे। व्यापार संधि के लिए एक वर्ष तक इंतजार करना होगा। यह सही है कि आयात शुल्क के मुद्दों पर दोनों देशों के मामले उठते रहे हैं। ट्रम्प ने भारत को शुल्कों का बादशाह कहा था। यह भी स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के व्यापारिक हितों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। दोनों नेताओं की बातचीत में व्यापार संधि के लिए दरवाजे खुले हैं। अमेरिका सामरिक और कला क्षेत्र में भारत के साथ खड़ा है।
ट्रम्प की यात्रा वाकई इतिहास का निर्णायक मोड़ है। भारत का कद तो पहले ही काफी बढ़ चुका है। अब तो यही बात अमेरिका यानी विश्व की अकेली महाशक्ति ने भी स्वीकार कर ली है। अमरीका स्वीकार कर चुका है कि भारत उदीयमान नहीं बल्कि उदित हो चुका है। जाहिर है कि इसमें हमारी हैसियत बढ़ी है और साथ ही जिम्मेदारियां भी। ट्रम्प की यात्रा की आलोचना करने वाले मीन-मेख निकाल सकते हैं कि वह भारत से अरबों रुपए के रक्षा सौधे हासिल कर ले गए हैं लेकिन यह भी देखना होगा कि भारत अब वैश्विक सामरिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। पहले की ही तरह ट्रम्प और मोदी की कैमिस्ट्री काफी अच्छी दिखाई दी। उम्मीद है कि दोनों देशों में भविष्य में संबंधों को नया आयाम मिलेगा।