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अभया को इंसाफ

केरल के कोट्टयम के सेंट पापस कान्वेंट में रहने वाली सिस्टर अभया की मौत के 28 वर्ष बाद सीबीआई अदालत ने एक अपराधी की गवाही के आधार पर फादर थॉमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी को दोषी करार दिया है।

केरल के कोट्टयम के सेंट पापस कान्वेंट में रहने वाली सिस्टर अभया की मौत के 28 वर्ष बाद सीबीआई अदालत ने एक अपराधी की गवाही के आधार पर फादर थॉमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी को दोषी करार दिया है। केरल में 28 वर्ष पहले सिस्टर अभया का शव जब कुएं से बरामद किया गया था तब भी काफी तूफान मचा था। अभया की मौत एक पहेली बन गई थी। इस केस को सुलझाने में भगवान का अदृश्य हाथ नजर आया। इस केस ने जिस तरह से मोड़ लिए अंततः कातिल पकड़ लिए गए, इसे विलम्ब से मिला न्याय ही कहा जाएगा। इस हाईप्रोफाइल केस में प्रभावशाली फादर और सिस्टर सेफी को बचाने की काफी कोशिशें की गईं। केरल की सियासत में चर्च काफी प्रभाव रखती है। पुलिस की अपराध शाखा ने इस मामले में लम्बी-चौड़ी जांच की और यह रिपोर्ट दी कि यह हत्या नहीं सुसाइड है। फिर इस केस में सीबीआई की एंट्री होती है और जांच के बाद भी​ बात पहले वाली निकलती है। सीबीआई की टीम भी ‘आत्महत्या’ की थ्योरी पेश करती है। 16 वर्ष बाद सीबीआई की तीसरी टीम अपनी रिपोर्ट देती है तो उसमें धुंधला सा इशारा होता है कि यह हत्या भी हो सकती है। 28 वर्ष बाद आए फैसले ने यह कहावत साबित कर दी कि ‘खून बोलता है’। केस के मुताबिक सिस्टर अभया ने फादर थॉमस कोट्टूर और सिस्टर सेफी को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था। इससे पहले कि सिस्टर भाग जाती, फादर कोट्टर और सिस्टर सेफी ने उसे पकड़ लिया और उसका मुंह दबा दिया। सिस्टर सेफी ने किचन के एक नुकीले हथियार से उसके ​सिर पर हमला किया। बाद में उसका शव घसीटते हुए कुएं में डाल दिया था परन्तु एक नजर उन्हें देख रही थी। वह नजर थी एक चोर राजू की जो ऊपर चढ़ कर लाइटिंग कंडक्टर से तांबा चुरा रहा था। इस केस के सबूत नष्ट कर दिए गए थे। चर्च के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव के चलते कई गवाह मुकर गए थे। जांच को छिन्न-भिन्न करने की कोशिश की गई। चोर की गवाही को लेकर आपत्ति की गई कि एक अपराधी की गवाही पर विश्वास नहीं किया जा सकता लेकिन राजू ने अपने आपराधिक इतिहास के आरोपों से इंकार नहीं किया और कातिलों को पहचाना। अंततः सीबीआई अदालत ने चोर की गवाही के आधार पर फैसला सुना दिया।
आखिरकार भारतीय न्याय व्यवस्था ने एक नया अध्याय लिख दिया। न्याय की देवी ने कातिलों को बचाने के लिए गढ़ी गई कहानी को सिरे से नकार दिया और भरी अदालत में असली कातिलों को बेनकाब कर दिया। यह केस इस देश में पुलिस की कार्यशैली और चर्च में हुए अपराधों को उजागर करता है।
हाथरस बलात्कार मामले में भी सीबीआई का आरोप पत्र उत्तर प्रदेश के गाल पर तमाचा है। इस वर्ष सितम्बर में हाथरस की युवती के साथ बलात्कार के बाद उसे मरणासन्न अवस्था में फैंक दिया गया था। जब युवती के परिजनों ने इस मामले की शिकायत थाने में दर्ज करानी चाही तो पुलिस वाले  रिपोर्ट लिखने में टालमटोल करते रहे। जब मामले में तूल पकड़ा तो कई दिन बीत जाने के बाद उसकी रिपोर्ट दर्ज कर चिकित्सकीय जांच कराई गई। तब तक बलात्कार के प्रमाण काफी हद तक मिट चुके थे। युवती की दशा बिगड़ने पर उसे जिला अस्पताल से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था। युवती ने अस्पताल में दम तोड़ दिया तो पुलिस ने उसका शव परिजनों को सौंपने की बजाय उनकी इजाजत के बगैर आनन-फानन में रात के अंधेरे में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। हाथरस केस में किसी तरह यह साबित करने की कोशिश की गई कि युवती को उसके परिवार वालों ने ही मारने की कोशिश की थी। पुलिस और प्रशासन ने तरह-तरह की कहानियां गढ़ कर आरोपियों को बचाने का प्रयास किया। सिस्टर अभया हत्याकांड की तरह हाथरस केस भी हैरान कर देने वाला केस रहा कि जिन लोगों पर न्याय दिलाने की जिम्मेदारी थी, वही अन्याय की तरफ खड़े थे और उन्होंने पीड़ित परिवार को धमका कर चुप कराने का प्रयास भी किया। इससे यह बात साबित होती है कि देशभर की पुलिस की कार्यशैली एक जैसी ही है। सीबीआई के आरोप पत्र दाखिल करने के बाद हाथरस केस में दोषियों को दंडित किए जाने की उम्मीद जगी है। 
इस देश में जातिवाद के आधार पर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है और बलात्कार की शिकार समाज के ​निर्बल वर्ग की हो तो फिर न्याय पाना कितना मुश्किल है। आरुषि हत्याकांड में भी पूरी जांच को इस कद्र छिन्न-भिन्न कर दिया गया था, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पूरी तरह पलट दिया था। जेसिका लाल हत्याकांड में भी ऐसा ही किया गया जब अपराधी साफ बरी हो गए थे। जब मीडिया में हैडलाइन्स प्रकाशित हुई-‘‘नो वन्य किल्ड जेसिका लाल’ तो मामला ऊंची अदालत में पहुंचा और दोषियों को दंडित किया गया।  इस देश में न्याय के लिए युद्ध लड़ना पड़ता है। देशवासियों का भरोसा न्यायपालिका पर इसीलिए कायम है कि उसने अनेक मामलों में न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए बड़े-बड़े ऐतिहासिक फैसले दिए हैं। लोगों के साथ न्याय होना ही चाहिए, बल्कि लोगों को इस बात का अहसास होना भी जरूरी है कि उनके साथ न्याय हुआ है। इसलिए सिस्टम को सुधारने की जरूरत है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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