कश्मीर के संदर्भ में एक शेर अक्सर कहा जाता रहा है –
कश्मीर में रहने वालों की तकदीर बदलती रहती है,
शीशा तो वही रहता है, तस्वीर बदलती रहती है।
कश्मीर के शीशे में कभी शेख अब्दुल्ला की तस्वीर थी, फिर फारूक अब्दुल्ला की तस्वीर लगी, फिर उमर अब्दुल्ला की तस्वीर लगी, फिर मरहूम मुफ्ती मोहम्मद सईद की तस्वीर लगी और उसके बाद महबूबा मुफ्ती की तस्वीर लगी। मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि कश्मीरी अवाम की तकदीर और कश्मीर की तस्वीर बदल दी जाये।
बात पहले अनुच्छेद 370 की विभीषिका से शुरू करें और उसके बाद पृष्ठभूमि को देखेंगे। एक मामूली से स्कूल मास्टर शेख अब्दुल्ला के बहकावे में आकर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्र के एक अभिन्न अंग कश्मीर का 2.5 हिस्सा जानबूझ कर पाकिस्तान की गोदी में डाल दिया और शेष कश्मीर में ऐसे-ऐसे दुष्कृत्य हुये कि वह कश्मीर जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता था, वह नरक में तबदील हो गया। जरा गौर फरमाए, कैसे-कैसे यहां षड्यन्त्र जन्म लेते रहे-
-अनुच्छेद 370 में कहा गया, यह अस्थाई है।
-जरा दुःखते जख्मों पर मरहम लगा दें, फिर इसे हटा देंगे।
-यह एक साजिश थी और साजिश के सूत्रधार थे शेख अब्दुल्ला और उन्हें इस षड्यन्त्र को रचने में हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सहायता प्रदान की। इस अनुच्छेद के दुष्परिणामों पर एक नजर डालें-
-सारे राष्ट्र में एक नागरिकता का प्रावधान है, परन्तु कश्मीर में दो नागरिकता। प्रदेशीय नागरिकता और भारतीय नागरिकता। जिसे प्रदेश की नागरिकता प्राप्त है उसे ही वहां के लोग असली कश्मीरी कहते हैं और भारतीय नागरिक कश्मीर में विदेशी हैं। प्रदेश का नागरिक ही वहां पर जमीन की खरीद-बिक्री कर सकता है, भारतीय नागरिक नहीं कर सकता। राज्य की जो नौकरियां हैं वह भी राज्य का नागरिक ही प्राप्त कर सकता है। वह किसी भारतीय नागरिक को नहीं दी जा सकतीं। वहां के स्थानीय निकाय यानि पंचायत, ग्रामसभा, नगर पालिका और यहां तक कि विधानसभा तक में वोट करने का अधिकार भारतीय नागरिक को नहीं है।
वहां भारतीय नागरिक केवल केन्द्र सरकार को चुनता है। जम्मू-कश्मीर की महिला यदि राज्य के बाहर किसी से विवाह कर ले तो उसे अपनी पैतृक सम्पत्ति से एवं प्रदेश की नागरिकता से हाथ धोना पड़ेगा। इसके विपरीत अगर वहां की महिला किसी पाकिस्तानी से विवाह कर ले तो उसे जम्मू-कश्मीर की नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता है। वहां का अलग झंडा है, वहां का एक कौमी तराना यानि राष्ट्रगान भी है, यह है-
लहरा ऐ कश्मीर के झंडे
तिफलो जवां और पीर के झंडे
हर सू लहरा, हर दम लहरा,
ता कयामत पैहम लहरा।
सोचने वाली असल बात तो यह है कि अगर किसी प्रदेश के नागरिकों को ये अधिकार दिये जायें और उनसे उम्मीद रखी जाये कि वह भारत के प्रति प्रतिबद्ध रहें तो यह मूर्खता ही होगी। राष्ट्र का ध्वज तो वहां 15 अगस्त और 26 जनवरी को रस्मी तौर पर फहराया जाता है। श्रीनगर के लाल चौक में राष्ट्र ध्वज फहराने के लिये भी हिम्मत जुटानी पड़ती है। कश्मीर के मामले में पूर्ववर्ती सरकारों की नीति यही रही है कि वहां इतने अधिक धन का प्रवाह होता रहे, इतने ज्यादा अधिकार दिये जाते रहें, इतना ज्यादा तुष्टीकरण किया जाता रहे कि कश्मीरी अवाम भारत के प्रति नतमस्तक रहे। समूची घाटी को उतना विषाक्त पाकिस्तान ने नहीं किया जितना कि आंतरिक षड्यन्त्रों ने।
राष्ट्र के सामने सवाल यह है कि भारत ने कश्मीर को जो भी विशेष सुविधायें दीं, उसकी एवज में उसे क्या मिला। भारत को मिले कालूचक और कासिम नगर जैसे नरसंहार, घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन, पाक प्रायोजित आतंकवाद और पुलवामा जैसे नरसंहार। आजादी के बाद में ही हमारे हजारों जवानों ने भारत मां के मुकुट की रक्षा के लिये अपनी शहादतें दीं। मुझे अच्छी तरह याद है कि सन् 2000 में फारूक अब्दुल्ला ने ‘आटोनामी’ का राग छेड़ा हुआ था। प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा करने वाले थे। फारूक अब्दुल्ला दिल्ली आये और प्रधानमंत्री से मिले, उन्हें प्रधानमंत्री के वापिस आने तक संयम बरतने की सलाह दी गई। उधर प्रधानमन्त्री का विमान उड़ा और इधर कश्मीर की विधानसभा में नाटक शुरू हो गया। ऐसे-ऐसे प्रवचन विधानसभा में हुये मानो वह कश्मीर नहीं बलूचिस्तान की असैम्बली हो।
जो प्रस्ताव पारित हुआ वह देशद्रोह का नग्न दस्तावेज था और वस्तुतः उस दस्तावेज में भारत की इतनी भूमिका है कि वह उस राज्य की किसी भी बाहरी आक्रमण के समय रक्षा करे। पैसे का अनवरत प्रवाह होता रहे और यहां की सरकार भारत को विखंडित करने का दुष्प्रयत्न करती रहे। भाजपा ने महबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर सरकार बनाई तो महबूबा अपना खेल खेलती रहीं। पत्थरबाज अपनी जांबाजी दिखाते रहे और सरकार उन पर दरियादिली दिखाती रही। दो विपरीत ध्रुव साथ चल ही नहीं सकते थे। अंततः भाजपा को अलग होना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने मनीलांड्रिंग में हुर्रियत के नागों पर शिकंजा कसा, कुछ जेलों में पहुंच चुके हैं। टेरर फंडिंग में कुछ और भी जेलों में जाने वाले हैं। कश्मीर में सुरक्षा बलों का आप्रेशन सफलतापूर्वक चल रहा है। आतंकवादियों की उम्र बहुत कम रह गई है।
मुझे लगता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी कश्मीर के सम्बन्ध में अहम फैसले ले सकती है। चाहे वह अनुच्छेद 370 का उन्मूलन हो या धारा 35ए का। यह भी सुनने में आया है कि बहुत जल्द केवल जम्मू को अलग राज्य घोषित किया जा सकता है और कश्मीर एवं लद्दाख को केन्द्रशासित (UT) राज्य घोषित किया जाएगा। इससे कश्मीर और लद्दाख में केन्द्र की पकड़ मजबूत रहेगी और धारा 370 का आधार खत्म हो जाएगा। लेकिन मेरा मानना है कि इससे कश्मीर समस्या को सुलझाने की बात नहीं बनेगी। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह को अगर करना ही है तो जम्मू-कश्मीर के बंटवारे की जगह प्रदेश को 1947 में पं. नेहरू की गलती से मिला Spacial State का अधिकार छीनना होगा तभी बात बनेगी। अब अति हो चुकी है।
पाप का घड़ा कश्मीर घाटी के देशद्रोह के खून से भर चुका है। ‘धारा 370 हटाओ, राष्ट्र की रक्षा करो’ जब यह मन्त्र बनकर गूंजेगा तभी राष्ट्र बचेगा। समूचा राष्ट्र कश्मीर को बचाने की शपथ ले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह जनभावनाओं को समझें और नया इतिहास रचें। कश्मीर की तस्वीर बदल दें। अगर मोदी और शाह ने जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को खत्म कर दिया? उसकी एवज में अब जो होना है, हो जाने दो, तो मोदी और शाह का नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।