भारत और नेपाल के रिश्ते रोटी और बेटी का रिश्ता होने के बावजूद भी काफी उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड से भी भारत के रिश्ते कभी गर्म तो कभी ठंडे रहे हैं। साल 2008 में जब प्रचंड पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपनी पहली अधिकारिक यात्रा चीन से शुरू की और भारत से कई मुद्दों पर उनका टकराव भी हुआ। एक साल बाद सत्ता गंवाते ही उन्होंने भारत से संबंध बेहतर बनाने की कोशिशें शुरू कीं। भारत की नजरें उनके द्वारा नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही उनके भावी रुख पर लगी हुई थीं। उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने तो नेपाल को पूरी तरह चीन की गोद में बैठा दिया था। ओली ने तो चीन के इशारे पर भारत से सीमा विवाद के मामले को काफी तूल दिया था। प्रचंड की भारत यात्रा का महत्व दोनों देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा। नेपाली प्रधानमंत्री की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बातचीत के बाद दोनों ने ही इस बात पर सहमति जताई कि सीमा विवाद दोनों देशों की मजबूत दोस्ती में बाधा नहीं बनेगा। दोनों देशों ने ही संकल्प व्यक्त किया कि रिश्तों को हिमालय की ऊंचाई देने के लिए हमेशा काम करते रहेंगे। इससे भारत-नेपाल संबंधों का नया दौर शुरू होने की उम्मीदें फलीभूत हुई हैं।
ऐसा लगता है कि प्रचंड भारत और चीन के रिश्तों में संतुलन बनाकर चलने की कोशिश कर रहे हैं। नेपाल, अमेरिका और चीन के बीच भी रणनीतिक युद्ध भूमि के रूप में उभर रहा है। मिलेनियम चैलेंज कार्पोरेशन नेपाल कॉम्पैक्ट के तहत अमेरिका ने नेपाल को 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान दिया था। तब से ही चीन नेपाल में अपनी मौजूदगी बढ़ाने का प्रयास कर रहा है और उस पर बीआरआई परियोजना समेत कई परियोजनाओं पर काम करने के लिए दबाव डाल रहा है। इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि प्रचंड अपनी विदेश यात्रा पहले की ही तरह चीन की करेंगे लेकिन उन्होंने भारत आकर इन सभी अटकलों को विराम लगा दिया। भारत नेपाल में गुरुवार को सात समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इन समझौतों में एक ट्रांजिट की संशोधित भारत-नेपाल संधि भी है। दोनों ही देशों ने नए रेल लिंक स्थापित कर सम्पर्क बढ़ाने का फैसला किया है।
भारत आने वाले 10 वर्षों में नेपाल से 10 हजार मेघावाट बिजली का आयात करने का भी समझौता िकया है। प्रचंड और मोदी ने वर्चुअल तरीके से बिहार के बथनाहा से नेपाल कस्टम यार्ड के लिए एक मालवाहक ट्रेन को हरी झंडी भी िदखाई। दोनों देश रामायण सर्किट परियोजनाओं में तेजी लाने पर सहमत हुए। नेपाल एक लैंडलॉक्ड देश है, जो तीन ओर से भारत से घिरा है। दोेनों देश 1,850 किलोमीटर से ज्यादा की सीमा साझा करते हैं। भारत के 5 राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के साथ सिक्किम, पश्चिम बंगाल से नेपाल की सीमा लगती है। ऊर्जा जरूरतों और खाद्यान्न के लिए नेपाल भारत पर बहुत ज्यादा आश्रित है। नेपाल के लिए भारत सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार भी है। हर संकट के समय भारत ने बड़े भाई की तरह नेपाल की मदद की है। हालांकि पिछले कुछ सालों से नेपाल में चीन अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है। चीन वहां आर्थिक दायरा तो बढ़ा ही रहा है, उसकी मंशा नेपाल की राजनीति पर भी प्रभाव डालने की रही है।
लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख के क्षेत्रों को लेकर भारत-नेपाल के बीच विवाद रहा है और प्रचंड के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरूआत में वहां की सरकार का जो रवैया रहा था, उसको देखते हुए ये कहा जा रहा था कि भविष्य में शायद भारत-नेपाल के रिश्तों में वो मिठास बरकरार न रह पाए। लेकिन पीएम प्रचंड का भारत दौरा और उसके बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ये कहना कि चाहे कुछ भी हो जाए दोनों ही देश अपने रिश्तों को हिमालय जितनी ऊंचाई देने के लिए काम करते रहेंगे। ये एक तरह से दोनों ही देशों के लिए सामरिक नजरिये से बेहद महत्वपूर्ण है। अब इस कड़ी में नेपाल के पीएम प्रचंड ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने यहां आने का न्यौता दिया है। उम्मीद है कि ऐसा होने के बाद दोनों देशों के बीच छिटपुट विवाद के मुद्दे भी जल्द ही सुलझा लिए जाएंगे, चाहे वो सीमा से जुड़े हों या फिर दूसरे क्षेत्र से जुड़े हों।
यद्यपि एक दशक से भी अधिक समय से नेपाल ने भारत को जनकपुर, भैरहवा और नेपालगंज से हवाई मार्ग प्रदान करने की अपील की थी, लेकिन भारत इस मामले में अभी मौन है। भैरहवा में अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा चीन द्वारा बनाया गया है। इसलिए भारत वहां उड़ानों के लिए दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। भारत का दृष्टिकोण पूरी तरह से रणनीतिक चिंताओं से जुड़ा हुआ है। देखना होगा रिश्तों के नए दौर में जटिल मुद्दे कैसे सुलझते हैं।