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महिला पहलवानों का प्रदर्शन

भारत में मल्लयुद्ध अथवा कुश्ती ऐतिहासिक काल से ही सम्मानजनक शारीरिक प्रतिस्पर्धा के रूप में प्रतिष्ठित रहा है और धार्मिक ग्रन्थों से लेकर ऐतिहासिक पुस्तकों में भी इसका उल्लेख मिलता है।

भारत में मल्लयुद्ध अथवा कुश्ती ऐतिहासिक काल से ही सम्मानजनक शारीरिक प्रतिस्पर्धा के रूप में प्रतिष्ठित रहा है और धार्मिक ग्रन्थों से लेकर ऐतिहासिक पुस्तकों में भी इसका उल्लेख मिलता है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में स्त्री-पुरुष के बीच बराबर के अधिकारों के चलते यह विद्या स्त्रियों में भी प्रचलित हुई और इसे ओलम्पिक खेलों में भी जगह मिली। परन्तु महिला पहलवान खिलाड़ियों ने अन्तर्राष्ट्रीय  कुश्ती प्रतिस्पर्धाओं में भारत का सिर जिस तरह ऊंचा किया, वह कम गौरव की बात नहीं है। परन्तु यदि इन महिला पहलवानों को ही अपने साथ यौन शोषण होने की घटनाओं के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर धरने पर बैठना पड़े तो यह पूरे देश के खेल जगत के लिए बहुत शर्म की बात है। हालांकि यौन शोषण के आरोप पूर्व में अन्य खेलों की महिला खिलाड़ी भी लगाती रहती हैं परन्तु पहलवानी के क्षेत्र में सक्रिय महिला खिलाड़ी यदि एेसा आरोप लगाती हैं तो उसके सामाजिक मोर्चे पर अलग मायने निकलते हैं। इसकी वजह यह है कि महिला पहलवान शारीरिक स्तर पर अपने बलिष्ठ होने का प्रमाण होती हैं और उनके साथ यदि इस प्रकार का बर्ताव कुश्ती संघ का कोई व्यक्ति करने की हिम्मत करता है तो उनके पहलवान होने का सन्दर्भ ही बदल जाता है। 
भारत की अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति की महिला पहलवानों विनेश फोगाट से लेकर साक्षी मलिक ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष श्री बृजभूषण शरण सिंह पर जिस तरह के आरोप लगाये हैं वे बहुत गंभीर हैं और गहन जांच कराये जाने की अपेक्षा रखते हैं। परन्तु इस मुद्दे पर केन्द्र के खेल मन्त्रालय ने जिस प्रकार तुरत-फुरत प्रतिक्रिया देते हुए इसका संज्ञान लिया है वह स्वागत योग्य कहा जायेगा क्योंकि इससे केवल महिला पहलवानों में ही नहीं बल्कि अन्य स्पर्धाओं की महिला खिलाडि़यों में भी आत्मविश्वास जगेगा और अपने साथ होने वाले किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से नहीं चूकेंगी। खेल मन्त्रालय ने कुश्ती संघ को अपने ऊपर लगाये गये आरोपों का जवाब देने के लिए 72 घंटे का समय दिया है। यदि श्री बृजभूषण शरण सिंह इस दौरान सन्तोषप्रद उत्तर देने में कामयाब हो जाते हैं और अपने ऊपर लगाये गये आरोपों को गलत उद्देश्य से उन्हें लांछित करने वाला बता पाते हैं तो जांच के माध्यम से ही उसकी सत्यता सिद्ध होगी। मगर प्राकृतिक न्याय कहता है कि सबसे पहले श्री सिंह को अपने पद से इस्तीफा देकर गहन व व्यापक जांच का रास्ता खोलना चाहिए। श्री सिंह सत्तारूढ़ पार्टी के ही लोकसभा सांसद भी हैं। अतः नैतिकता भी कहती है कि वह तुरन्त इस्तीफा देकर भारतीय कुश्ती संघ की साख की रक्षा करें। वह काफी लम्बे अर्से से इस संघ के अध्यक्ष हैं और उनके कार्यकाल के दौरान ही यदि कुश्ती प्रशिक्षकों पर भी यौन शोषण के कार्य में मदद करने के आरोप लगते हैं तो इसका अर्थ यही निकलता है कि श्री सिंह संघ को अपनी निजी सम्पत्ति समझ रहे हैं जबकि वास्तव में कुश्ती संघ एक लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी जाने वाली संस्था है। 
भारत में अखाड़ों के ​खलीफा या उस्तादों का सम्मान भी पहलवानों से कम नहीं होता था क्योंकि वे ही उन्हें कुश्ती के गुरों और दांवों में माहिर बनाकर सफलतम बनाते थे। हरियाणा के पहलवानी के क्षेत्र के ‘खलीफा बदरी’ का नाम कौन भूल सकता है जिनके पट्ठों ने अखिल भारतीय स्तर से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं तक में अपने कारनामें दिखाये थे। साठ और सत्तर के दशक में खलीफा बदरी की शागिर्दी के लिए उभरते हुए पहलवान बेचैन रहते थे। उस दौरान ‘हिन्द केसरी’ खिताब के लिए मेहरदीन व मास्टर चन्दगी राम के बीच हुई प्रतियोगिता को कैसे भुलाया जा सकता है। मास्टर चन्दगी राम खलीफा बदरी के ही पट्ठे थे। 
अब वक्त बदल चुका है और मिट्टी के अखाड़ों की जगह कुश्तियां गद्दों पर होती हैं जिससे विश्व प्रतियोगिताओं में भारत के खिलाड़ी अपना कमाल दिखा सकें। अतः मल्ल विद्या का भी पूरी तरह आधुनिकीकरण हो चुका है और संस्थागत रूप से राज्य व केन्द्र सरकारें अपने पहलवानों को तैयार करती हैं व उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था से लेकर उनके भोजन आदि का ख्याल रखती हैं। यह कार्य विभिन्न खेल संघों के माध्यम से किया जाता है। यदि ये खेल संघ ही भ्रष्टाचार व यौनाचार के अड्डे बन जायेंगे तो योग्य खिलाड़ी किस प्रकार उभर कर ऊपर आ सकेंगे। स्वतन्त्रता से पहले भारत में यह काम राजे-रजवाड़े किया करते थे और अपनी रियासतों में नामी पहलवानों को रखने में फख्र महसूस करते थे। 
विश्व विजयी गामा पहलवान से लेकर कीकड़ सिंह व प्रोफे. राममूर्ति तक एेसे ही पहलवान थे जिनके नाम का डंका बजता था। गामा पहलवान पटियाला रियासत की शान समझा जाता था। इसी प्रकार संयुक्त पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में पहलवानी की पूरी विरासत थी। इतना ही नहीं प्रत्येक जिले का भी जिला केसरी पहलवान हुआ करता था। हिन्दू व मुसलमान दोनों में ही इस विद्या के लिए बराबर की उत्सुकता थी। पंजाब का विभाजन होने के बाद हरियाणा पहलवानी का केन्द्र बना और यहां की महिला पहलवान भी आगे आयीं। यह वास्तव में हरियाणा जैसे परंपराओं में बन्धे राज्य के लिए एक उपलब्धि है। अतः महिला पहलवानी को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी आवाज को तुरन्त सुनें जाने की जरूरत है।

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