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राजनाथ सिंह की हुंकार

दुनिया की किसी भी समस्या के समाधान का रास्ता बातचीत है लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों का ईमानदार होना जरूरी है। चीन ने सीमा विवाद का हल निकालने के लिए कभी भी ईमानदारी नहीं दिखाई।

दुनिया की किसी भी समस्या के समाधान का रास्ता बातचीत है लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों का ईमानदार होना जरूरी है। चीन ने सीमा विवाद का हल निकालने  के लिए कभी भी ईमानदारी नहीं दिखाई। अब तक सीमा विवाद को हल करने के लिए कई द्विपक्षीय बैठकें हो चुकी हैं लेकिन हल की ओर वह एक कदम भी नहीं बढ़ाता।
इतना ही नहीं वह अरुणाचल और सिक्किम को भी अपना बताता है। वास्तव में चीन सिर्फ सीमा विवाद को हल करने के लिए द्विपक्षीय बातचीत का नाटक करता रहा। डोकलाम में मुंह की खाने के बाद चीन भारत को अपनी ताकत दिखाने की ताक में था। उसने पूर्वी लद्दाख में भारत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
जब भारत कोरोना की महामारी से जूझ रहा है तो उसे सीमा पर तनाव का सामना करना पड़ा। चीन की सोच में सीमा विवाद को लेकर बुनियादी बदलाव देखा जा सकता है। चीन ने बड़ी कुटिलता के साथ सीमा विवाद को अपने सामरिक विस्तार के मोहरे की तरह ​प्रयोग किया।
चीन जम्मू-कश्मीर को विवादास्पद क्षेत्र कहता रहा है तो उसका कारण सिर्फ पाकिस्तान को खुश करना नहीं बल्कि चीन इस क्षेत्र में अपनी पैठ बनाकर भारतीय सुरक्षा को हर तरफ से कमजोर करने की कोशिश में है।
भारत जिसे सीमा ​मानता है, चीन उसे नहीं मानता। इसी का फायदा उठाकर वह हर बार नए ठिकानों पर कब्जा जमाता है और उस क्षेत्र पर अपना दावा ठोक देता है। भारत और चीन के बीच इस बात को लेकर सहमति बनी थी कि जब तक सीमा विवाद का स्थायी समाधान नहीं निकल जाता, तब तक एलएसी पर कम से कम सेना की तैनाती होगी।
इसके अलावा 1990 से लेकर 2003 तक दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर आपसी समझ बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए लेकिन बाद में चीन इससे पीछे हट गया। जाहिर है, वह चाहता ही नहीं है कि एलएसी को लेकर कोई एक राय बने।
चीन से जारी गतिरोध के बावजूद भारत ने अपनी ओर से शांति और संयम का परिचय देते हुए संदेश दिया है कि वह बातचीत के जरिये ही विवाद का समाधान चाहता है। सितम्बर के पहले हफ्ते में ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मास्को में चीन के रक्षा मंत्री से बातचीत हुई।
इसके बाद भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मुलाकात भी मास्को में हुई जिसमें 5 सूत्री सहमति भी बनी, लेकिन चीन एलएसी को लेकर हुए समझौतों की धज्जियां उड़ा रहा है। जिस चीन ने पंचशील समझौते की धज्जियां उड़ाई हों, जिसने गांधीवाद काे ठेंगा दिखाया था, उस पर कितना भरोसा किया जा सकता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीन की कुटिल नीतियों से भलीभांति अवगत हैं। वह एक परिपक्व और गम्भीर सूूझबूझ वाले राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा में भारत-चीन तनाव पर अपने वक्तव्य में राष्ट्र को भरोसा दिलाया है कि हर कीमत पर भारत के स्वाभिमान की रक्षा होगी।
देश का मस्तक कभी झुकने नहीं देंगे और न ही भारत किसी दूसरे को झुकाना चाहता है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारतीय जवानों का जोश काफी  हाई है, जो भी सम्भव होगा, वह कार्रवाई की जाएगी। भारत को चीन की सीमाओं को बदलने की एक तरफा कार्रवाई स्वीकार्य नहीं।
भारत पहले ही चीन को दो टूक कह चुका है कि अगर जरूरत पड़ी तो वह चीन को सबक सिखाने के लिए सैन्य विकल्प सहित सभी उपायों का प्रयोग करने में जरा भी नहीं हिचकिचाएगा। चीन भारत को अपना गम्भीर प्रतिद्वंद्वी मानता है। चीन भले ही बड़ी सैन्य शक्ति हो लेकिन भारतीय जवान युद्ध कौशल में उनके जवानों से ज्यादा माहिर हैं।
गलवान घाटी में हुई झड़प में यद्यपि 20 भारतीय जवानों ने शहादत दी लेकिन चीन के 40 जवानों की गर्दनें मरोड़ते हुए उन्हें मार डाला। कुछ ही दिनों में हमने एलएसी पर बुनियादी सामरिक ढांचा खड़ा कर दिया। गलवान में कितने चीनी मारे गए, इसे लेकर चीन ने जानकारी छिपाई क्योंकि इससे चीन जैसे अहंकारी देश के लिए एक सैनिक की मौत भी शर्मिंदगी की वजह बनती है।
चीन को इस बात का अहसास है कि भारत को बड़े देशों का साथ मिल रहा है। भारत भी पश्चिमी हिन्द महासागर में चीनी जहाजों के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। फिर चीनी जहाजों को अपनी रक्षा के ​लिए वेस्टर्न पैसिफिक छोड़ कर इस तरफ आना होगा।
दो दिन पहले दक्षिण चीन सागर में चीनी जहाज को तो इंडोनेशिया जैसे देश ने खदेड़ दिया था। दक्षिण चीन सागर में ड्रेगन की हरकतों से हर कोई परेशान है। चीन के विरुद्ध अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फिलीपींस, जापान, वियतनाम और भारत का एक गठजोड़ उभर रहा है जो चीन के लिए परेशानी पैदा कर सकता है।
जिस तरह से चीन का व्यापारिक बाॅयकाट करने का आह्वान रंग ला रहा है, जिस तरह से चीनी एप पर प्रतिबंध लगाया गया, उससे भी चीन बौखला गया है। चीन द्वारा भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को लेकर देश के प्रमुख राजनीतिज्ञों, न्यायाधीशों, सैन्य अधिकारियों और उद्योगपतियों की जासूसी का भंडाफोड़ होने पर पूरा विश्व सतर्क हो चुका है।
भारत ही नहीं कोई भी देश चाहे विषय भौगोलिक हो, आर्थिक हो या फिर तकनीकी हो, चीन को मनमर्जी की इजाजत नहीं दी जा सकती। किसी भी देश की डिजीटल निगरानी के साथ-साथ डेटा चोरी और सर्विलांस के अन्य मसलों को जोड़ कर देखा जाए तो पूरा विश्व इस समस्या पर विचार करने की जरूरत महसूस करने लगा।
पूरे विश्व में चीन विरोध जनभावनाएं जोर पकड़ रही हैं। कोरोना वायरस भी चीन की ही लैब में तैयार होकर निकला है। चीन के विरुद्ध घृणा का वातावरण सृजित हो रहा है। भारत भी 1962 या 65 वाला भारत नहीं है। चीन ने वियतनाम को बंजर धरती बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन वियतनाम ने चीन की ​कथित चुनौती की ताकत को धूल में मिला दिया। वियतनाम दुनिया का एक ऐसा देश है जिसने चीन को उसकी सही औकात दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
भारत आज सक्षम है तो वह ऐसा क्यों नहीं कर सकता।  चीन के भारत विरोध का सबसे बड़ा कारण आर्थिक भी है क्योंकि भारत भी अब बड़ी ताकत बन कर उभरा है। अगर वह युद्ध छेड़ता है तो ड्रेगन को सबसे ज्यादा नुक्सान हो सकता है। रक्षा मंत्री राजनाथ की हुंकार में देश के राष्ट्रीय सम्मान का सबसे ज्यादा भाव है और इसका कारण देश की सेवा का मनोबल उत्कृष्टतम स्थिति है। भारतीय सेना की ताकत का अहसास चीन को हो चुका है।
–आदित्य नारायण चोपड़ा

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