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शेल्टर होम जांच : सवाल तो उठेंगे ही

शेल्टर होम मामले में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी जांच रिपोर्ट दे दी है। उसने कहा है कि शेल्टर होम में किसी बच्ची की हत्या नहीं हुई और सभी गायब 35 लड़कियां सकुशल हैं।

बहुचर्चित मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी जांच रिपोर्ट दे दी है। उसने कहा है कि शेल्टर होम में किसी बच्ची की हत्या नहीं हुई और सभी गायब 35 लड़कियां सकुशल हैं। इस जांच रिपोर्ट को लेकर कुछ सवाल भी खड़े हो गए हैं। फॉरेंसिक जांच में बरामद हुए कंकाल एक महिला और पुरुष के हैं। इस बात का खुलासा अभी किया जाना है कि आखिर ये नरकंकाल किसके हैं। सीबीआई जांच को लेकर हैरानी जताई जा रही है। मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस मामले की गूंज पूरे देश में हुई थी। 
बिहार के विपक्षी दलों ने खूब हो-हल्ला किया था। सोशल मीडिया ने भी आग उगली थी। मामले के आरोपी ब्रजेश ठाकुर और चन्द्रशेखर वर्मा पर बच्चियों के यौन शोषण के आरोप लगाए गए थे। आरोपी चन्द्रशेखर वर्मा की मंत्री पत्नी मंजू वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा था। अब सवाल उठता है कि क्या इस मामले में झूठ और भ्रम फैलाने की राजनीति की गई। क्या अपराध के मामले में मीडिया ट्रायल शुरू हुआ जो लम्बे समय तक चला।
राजनीतिज्ञों से जुड़े अपराध के मामले में हमेशा सियासत भी होती है और ऐसा भ्रमजाल फैलाया जाता है जिससे उनकी और उनकी पार्टी की छवि धूमिल हो। जब आरोपी चन्द्रशेखर वर्मा के घर सीबीआई ने छापेमारी की ताे उनके घर से प्रतिबंधित बोर की 50 गोलियां मिली थीं। तब सीबीआई ने ​बिहार की मंत्री मंजू वर्मा और उनके पति चन्द्रशेखर वर्मा को आर्म्स एक्ट में आराेपी बनाया। सीबीआई तीन महीने तक मंजू वर्मा को गिरफ्तार करने में विफल रही। तीन माह तक मंजू वर्मा को ​किसने संरक्षण दिया? 
जब दबाव बढ़ा तो मंजू वर्मा ने आत्मसमर्पण कर ​दिया। तीन महीने तक गिरफ्तारी नहीं होने पर सवाल तो उठने ही थे। सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न मामले की जांच कर रहे अपने अधिकारी का तबादला करने के लिए भी सीबीआई को फटकार लगाई थी और कहा था कि यह उसके आदेश का उल्लंघन है। शीर्ष न्यायालय ने बिहार सरकार से कहा था कि ‘‘बस बहुत हो गया बच्चों के साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया जा सकता, आपके अधिकारी बच्चों के साथ इस तरीके से व्यवहार नहीं कर सकते। कम से कम बच्चों को तो बख्श दो।’’
मुजफ्फरपुर में एनजीओ द्वारा संचालित शेल्टर होम में कई लड़कियों से कथित तौर पर बलात्कार और यौन उत्पीड़न का खुलासा वहां की पुलिस ने नहीं किया था बल्कि टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की एक रिपोर्ट के बाद यह मामला सामने आया। शेल्टर होम में रह रही लड़कियों ने खुद बताया था कि बच्चियाें  को मार कर यहां गाड़ा गया था। शेल्टर होम के कर्मियों ने भी कबूला था ​कि बच्चियों की हत्या कर गाड़ा गया था। सुप्रीम कोर्ट में याचिकादाता निवेदिता झा ने भी सीबीआई की जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है ​कि बालिका गृह से लापता दो किशोरियों और दो बच्चियों की संदिग्ध मौत को रिपोर्ट में शामिल ही नहीं किया। सीबीआई रिपोर्ट से लग रहा है कि बड़े लोगों को बचाने में खेल हुआ है। 
फरवरी 2018 में बिहार के सभी शेल्टर होम का सोशल आडिट हुआ था। बिहार के समाज कल्याण विभाग की ​सिफारिश पर टीआईएसएस की एजेंसी ‘कोशिश’ ने सोशल आडिट किया था तो कुछ शेल्टर होम में बच्चियों के साथ हो रहे अत्याचार को उजागर किया था। इस संबंध में कुछ पर मुकद्दमा चल रहा है। सीबीआई ने भी 25 पूर्व डीएम सहित 70 अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने की सिफारिश की है।
शेल्टर होम पर सीबीआई की जांच रिपोर्ट को लेकर बिहार में एक बार फिर सियासत तेज हो गई है। राजद ने आरोप लगाया कि सीबीआई ने केस को पलट कर बड़े लोगों को बचाया है। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेन्द्र कुशवाहा ने आरोप लगाया कि सीबीआई नीतीश कुमार को क्लीन चिट देगी, इस बात की आशंका पहले से ही थी। कांग्रेस ने भी सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इस सरकार में कुछ भी सम्भव है। अहम सवाल यह है कि क्या सीबीआई ने जांच के नाम पर महज लीपापोती की है। 
क्या उसकी जांच पर ताली बजाई जाए कि इंसाफ हो गया, जबकि इस मामले में नीतीश सरकार के कई मंत्रियों पर भी सवाल उठे थे। यह मामला अपराधियों और राजनीतिज्ञों की सांठगांठ का है। अगर मोटी तोंद और मूंछों वाला मंत्री बच गया तो फिर इंसाफ कहां हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने शेल्टर होम केस 7 फरवरी  2019 को ​बिहार से दिल्ली ट्रांसफर ​किया था। साकेत कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीड़ितों के साथ न्याय होना चाहिए लेकिन न्याय होता दिखना भी चाहिए। फैसला कुछ दिनों बाद आना है।

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