देश में मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में बड़े विस्तार की जरूरत लम्बे समय से महसूस की जाती रही है। भारत में मेडिकल कालेजों की संख्या पर्याप्त है लेकिन डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। इस देश में मेडिकल कालेजों की सीटें लाखों में बिकती रही हैं। भारत में हर वर्ष लगभग 50 हजार डॉक्टर बनते हैं। भारत में डॉक्टर और पेशेंट रेशो काफी पीछे है। देश में प्रति 1700 मरीज पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इसका अनुपात 1100 मरीजों के लिये एक डॉक्टर होना चाहिये।
हर वर्ष मौसमी बीमारियों के दिनों में देखें तो सरकारी अस्पतालों में मरीजों को बैड तक नसीब नहीं होते। बड़े अस्पतालों की तो बात छोड़िए प्राइमरी हैल्थ सेंटरों की हालत बहुत दयनीय है। स्वास्थ्य सेवा सुलभ होने के मामले में भारत 195 देशों में 154वें पायदान पर है। यहां तक कि यह बांग्लादेश, नेपाल, घाना और लाइबेरिया से भी बदतर है। स्वास्थ्य सेवा पर भारत सरकार का खर्च जीडीपी का 1.15 फीसदी है जो दुनिया के सबसे कम खर्चों में से एक है। अन्य देशों के स्वास्थ्य पर खर्च को देखें तो भारत कहीं भी नहीं ठहरता।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधायें हासिल करना तो टेढ़ी खीर है। ग्रामीणों के लिये मूलतः स्वास्थ्य उपकेन्द्र, आशा कार्यकर्ता और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र उपलब्ध हैं परन्तु उनकी बुरी हालत देखकर तो ऐसा लगता है जैसे ग्रामीण भारत की सुध किसी को नहीं है। निजी अस्पताल लूट का अड्डा बन चुके हैं। इन अस्पतालों का भ्रष्टाचार किसी से छिपा हुआ नहीं। अस्पतालों में लापरवाही, अनैतिकता एवं अमानवीयता की घटनायें आम हैं। सेहत के मामले में राज्यों का अपना रोना है। दिल्ली में उपचार कराना तो काफी महंगा है। देशभर में करीब 600 जिला अस्पताल हैं और ये 200 से 300 बिस्तर वाले अस्पताल हैं लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है और 12-15 फीसदी डॉक्टर नदारद रहते हैं। देश में एम्स जैसे अस्पतालों की कमी है।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र की तस्वीर बदलने के लिये बड़े फैसले ले रही है। पहले उन्होंने आयुष्मान राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन शुरू किया। इस योजना के माध्यम से 10 करोड़ से ज्यादा परिवारों के लगभग 50 करोड़ लोगों को मुफ्त इलाज के दायरे में लाया गया है। अब इस योजना का विस्तार किया जा रहा है। सरकार ने देश में सस्ती और गुणवत्ता युक्त मेडिकल शिक्षा व्यवस्था लाने का रास्ता राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक पर संसद की मुहर लगाकर प्रशस्त किया। राष्ट्रीय मेडिकल आयोग के गठन के बाद मेडिकल शिक्षा की फीस कम हो जायेगी। विद्यार्थियों पर बोझ कम होगा और ईमानदारी व गुणवत्ता बढ़ेगी। मेडिकल के दाखिले की तमाम जटिलताओं से भी छुटकारा मिलेगा। इसके अलावा बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार अधिक लोगों तक होगा। राष्ट्रीय मेडिकल आयोग शिक्षा के लिये नई नीतियां बनायेगा और चार स्वायत्त बोर्डों की गतिविधियों का समन्वय करेगा।
अब केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने देश में 2021-22 तक 75 मेडिकल कालेज खोलने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। ये मेडिकल कालेज उन क्षेत्रों में खोले जायेंगे, जहां अभी इनकी उपलब्धता नहीं है। इससे लाखों की संख्या में गरीबों और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों को लाभ होगा और ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की उपलब्धता बढ़ेगी। नये मेडिकल कालेज खुलने से एमबीबीएस की 15,700 नई सीटें सृजित होंगी। पिछले पांच वर्षों में पी.जी. और एमबीबीएस की 45 हजार सीटें जोड़ी गई हैं और इसी अवधि में 82 मेडिकल कालेजों को मंजूरी दी गई है।
मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया के किसी देश में यह बड़ा विस्तार है। देश में डॉक्टरों की संख्या बढ़ेगी और नये अस्पताल बनेंगे तो हैल्थ सैक्टर में क्रांतिकारी परिवर्तन आयेगा। प्राइवेट कालेज मैनेजमेंट कोटे की सीटों को एक-एक करोड़ में अयोग्य छात्रों को बेच देते थे लेकिन अब ऐसा करना मुश्किल होगा। सरकार प्राइवेट कालेजों में मेडिकल शिक्षा की फीस तय करेगी। मोदी सरकार ने हमेशा लोगों के स्वास्थ्य को सर्वोपरि माना है। 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी तो मेडिकल में 52 हजार अंडर ग्रेजुएट और 30 हजार पोस्ट ग्रेजुएट सीटें थीं।
अब देश में 85 हजार से ज्यादा अंडर ग्रेजुएट और 46 हजार से ज्यादा पोस्ट ग्रेजुएट सीटें हैं। सरकार लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिये लगातार नीतियों में बदलाव कर रही है। स्वास्थ्य क्षेत्र पर होने वाले खर्च को 2025 तक आते-आते जीडीपी का 2.5 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है। मेडिकल कालेजों में स्थानीय बच्चों को पढ़ने का अवसर मिलेगा वहीं लोगों को उन्हीं के क्षेत्र में इलाज की सुविधा मिलेगी।