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दिल्ली को जहर का चैम्बर हमने खुद बनाया है

किसी भी देश की राजधानी के लिए लोगों के दिलों में एक विशेष आकर्षण रहता है लेकिन कोई भी दिन त्यौहार हो, कोई भी खुशी का अवसर हो, दिल्ली देश की राजधानी

किसी भी देश की राजधानी के लिए लोगों के दिलों में एक विशेष आकर्षण रहता है लेकिन कोई भी दिन त्यौहार हो, कोई भी खुशी का अवसर हो, दिल्ली देश की राजधानी है और यहां जीवन में कदम-कदम पर हर दिन त्यौहार के मौके पर ही इतनी चुनौतियां लोगों के सामने उतरती हैं कि जीना मुश्किल हो सकता है। अभी कुछ दिन पहले दशहरे से दिवाली, गौवर्धन और भाईदूज त्यौहार आते-आते यह शहर यानी हमारी दिल्ली जहरीली हवाओं का ऐसा चैंबर बन चुकी है कि जहां वायु गुणवत्ता एक बेहद खतरनाक और अविश्वसनीय स्तर पर पहुंच गई है। शुक्रवार की सुबह वायु गुणवत्ता का पीएम लेवल 999 नापा गया जिस पर विशेषज्ञ भी हैरान हैं। दिल्ली के पॉल्यूशन को नापने के लिए जो प्रणाली अपनाई गई है उसे पीएम अर्थात पॉल्युशन मीटर कहा गया है। मेरा दिल्ली वालों से ही एक सवाल है कि इन सबके लिए जिम्मेवार कौन है? आप अपने दिलों में झांकिए तो आपको जवाब मिलेगा इस सबके लिए जिम्मेवार आप ही हैं। बाजारों में लोगों की भीड़, दुकानों पर खरीदारो का सैलाब, सड़कों पर वाहनोंं  की होड़ और मास्क न लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करना तथा सैनिटाइजेशन न करना ये सब कौन कर रहा है? 
दिल्ली की आबोहवा बिगडऩे अर्थात पॉल्युशन इतने खतरनाक स्तर पर जाने की बड़ी वजह लोगों के पटाखे जलाने की है। सरकार ने, सुप्रीम कोर्ट ने लोगों से अपील कर रखी थी कि पटाखे चलाना, बेचना कानूनी जुर्म है लेकिन दिल्ली वालों ने किसी की एक न मानी और प्रतिबंध के बावजूद पटाखे जलाये और आतिशबाजी चला कर इस महानगर को एक सुंदर शहर और अनुशासित लोगों का उदाहरण प्रस्तुत करने की बजाये अपने आप को बदनाम कराना ज्यादा मुनासिब समझा। कहने का मतलब यह है कि चाहे पीएम मोदी जी की सरकार हो या दिल्ली में सीएम केजरीवाल की सरकार हो लोग अगर सरकारों के पॉल्युशन और कोरोना विरोधी अभियानों की कद्र ही नहीं करेंगे तो बात नहीं बनेगी। मैं अकसर डिबेट के दौरान या सामाजिक जीवन में कई बड़े संगठनों के कार्यक्रमों में व्यस्त रहती हूं परंतु पॉल्युशन और कोरोना को लेकर बातचीत चलती है तो एक ही बात कहती हूं कि किसी भी चीज को अच्छा या बुरा बनाने वाले हम लोग ही हैं। सरकार चाहे स्वच्छता का अभियान चला सकती है, योगा का अभियान चला सकती है, पटाखे न चलाने के लिए अपील जारी कर सकती है लेकिन मैं कई बार हैरान होती हूं कि हेलमेट न पहनने पर कानून अपराध मानकर जुर्माने का प्रावधान है परंतु लोग नियमों की धज्जियां उड़ाकर दिल्ली शहर हो, एनसीआर हो या कोई भी छोटा शहर हो सरकार की बात नहीं मानते। अगर नियमों का पालन ही नहीं करना तो फिर इन नियमों का कोई फायदा नहीं। इसी कॉलम के माध्यम से कोरोना को लेकर सावधान रहने के लिए कई  बार लिखा लेकिन यह बात सच है कि आज भी कोरोना के नियमों का पालन न करने वालों की कोई कमी नहीं है। यह बात अलग है कि लोग नियमों का पालन भी करते हैं। लेकिन जो नियमों का पालन नहीं करते उसी से बात बिगड़ जाती है और दिल्ली की हवा में घुलता जहर ऐसे ही लोगों ही वजह से है। 
सवाल पैदा होता है कि क्या किया जाये? सरकार सख्ती करती है तो लोगों को पसंद नहीं, अफसर चालान करते हैं तो लोगों को पसंद नहीं आखिरकार दिल्ली शहर के अनुशासन और साफ सुथरी स्वास्थ्यवर्धक हवा अगर बिगड़ रही है तो इसे सुधारेगा कौन? हम लोगों को खुद ही पहल करनी होगी। अपने जीवन में अनुशासन को उतारना होगा। कोई भी काम तभी अच्छा माना जाता है जिसकी शुरूआत पहले हम अपने आप पर लागू करके करें। हफ्ते में एक दिन वाहन  प्रयोग न करना या मैट्रो अथवा पूलिंग से अपने दफ्तर तक जाना कोई बुरी बात नहींं  है। दस हजार आदमी या एक लाख आदमी अपने वाहन सड़कों पर नहीं निकालेंगे तो पॉल्युशन का स्तर सुधरेगा। काश दिल्ली वाले पटाखे न चलाते तो हमें यह दिन न देखना पड़ता। कोरोना ने हमें बुरी तरह से प्रभावित किया है। पॉल्युशन के जहरीले प्रभाव ने हमें खतरे में ला खड़ा किया है। इससे पहले कि हालात बिगड़ जाये आइये संभल जाएं और नियमों का पालन करें। तभी दिल्ली, हमारी दिल्ली और एक अनुशासन और स्वच्छ शहर की संस्कृति का उदाहरण प्रस्तुत कर सकेगी।

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