पटना : बाबू वीर कुँवर सिंह के कुशल नेतृत्व में वर्ष 1857 में लड़ी गई स्वतंत्रता की पहली लड़ाई में बिहारियों के शौर्यपूर्ण योगदान की भारी कीमत बिहार को चुकानी पड़ी। अंग्रेज इनके पराक्रम से घबरा गये और सेना में बिहार तथा उत्तर प्रदेश के लोगों की संख्या काफी घटा दी गई। यह बातें उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बाबू वीर कुँवर सिंह के 160वें विजयोत्सव पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कही।
उन्होंने वीर कुंँवर सिंह के पराक्रम की चर्चा करते हुए कहा कि उनकी मृत्यु के 5 माह बाद तक जगदीशपुर स्वतंत्र बना रहा। उन्होंने कहा कि यदि वर्ष 1857 में बाबू कुँवर सिंह ने आजादी की लड़ाई नहीं छेड़ी होती तो शायद वर्ष 1947 में देश आजाद नहीं होता।
श्री मोदी ने कहा कि अंग्रेज 1857 की लड़ाई को भारतीय संग्राम की पहली लड़ाई मानने को तैयार नहीं थे और उन्होंने इसे सिपाही विद्रोह की संज्ञा दी। किन्तु बिहारियों के पराक्रम और शौर्य से घबराकर ब्रिटिश सरकार ने उन क्षेत्रों और जाति विशेष के लोगों को सेना में भर्ती करना बंद कर दिया। सूबेदार से उपर के पदों पर भारतीयों की प्रोन्नति रोक दी गई। सेना के लिए भौगोलिक और सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण विभागों में सिर्फ गोरों की ही नियुक्ति होने लगी। सेना में अंग्रेजों की संख्या बढ़ा दी गई। अंग्रेजों ने ‘‘फूट डालों और राज करो’’ की राजनीति शुरू की तथा जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव किये जाने लगे। अलग-अलग जातियों के नाम पर रेजीमेंट बनाये गये। अंग्रेजों को श्रेष्ठ मानकर भारतीयों का तिरस्कार किया जाने लगा तथा ट्रेनों, होटलों, पार्कों आदि में गोरों के लिए अलग जगह आरक्षित किये गये।
उप मुख्यमंत्री ने कहा कि 1857 की क्रांति के बाद भारतीयों पर अंग्रेजों के अत्याचार बढ़ गये तथा प्रेस पर भी अंकुश लगाये गये। सरकार का ध्यान मुख्य रूप से सेना और प्रशासन पर था तथा आम जनता की घोर उपेक्षा की जाने लगी। सिर्फ कुछ शहरों और कन्टोन्मेंट का ही विकास हुआ, जहाँ कुलीन लोग रहते थे। अंग्रेजी सरकार का राजस्व संबंधी आंकड़ा बताते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 1886 में सरकार की कुल आय 47 करोड़ रू0 थी, जिसमें से शिक्षा और स्वास्थ्य आदि के मद में मात्र 2 करोड रू0 जबकि सेना पर 19 करोड़ रू0 और प्रशासन पर 17 करोड़ रू0 खर्च किये जाने थे।
श्री मोदी ने वीर कुँवर सिंह के शौर्य व पराक्रम की चर्चा करते हुए कहा कि बिहार सर्वाधिक संघर्षशील और जुझारू राज्य है तथा यहां के लोगों ने आजादी की लड़ाई से लेकर आपातकाल के जुल्म और अन्याय के खिलाफ संघर्ष में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है, हालाँकि इसके लिए बिहार को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी।
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