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रिजर्व बैंक का कोरोना पैकेज

कोरोना संकट के आर्थिक दुष्परिणामों से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने जो तात्कालिक वित्तीय कदम उठाये हैं उनका स्वागत इस दृष्टि से किया जाना जरूरी है

कोरोना संकट के आर्थिक दुष्परिणामों से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने जो तात्कालिक वित्तीय कदम उठाये हैं उनका स्वागत इस दृष्टि से किया जाना जरूरी है कि इनसे फौरी तौर पर लघु उद्यमियों व निजी कर्जदारों के अलावा कोरोना महामारी से निपटने के लिए आवश्यक औषधियां व उपकरण बनाने वाली कम्पनियों व उद्यमियों को कुछ राहत मिलेगी। रिजर्व बैंक ने 50 हजार करोड़ की धनराशि एेसी कम्पनियों को वित्तीय मदद देने की गरज से बैंकों के खातों में डालने की घोषणा की है तथा दस हजार करोड़ रुपए की धनराशि निजी व लघु उद्यमियों या छोटी वाणिज्य फर्मों को अपने कर्ज में परिशोधन करने के लिए दी है। साथ ही उन्होंने राज्य सरकारों के लिए बैंकों से सीमा से अधिक ऋण (ओवर ड्राफ्ट) की अवधि भी 36 दिन से बढ़ा कर 50 दिन कर दी है। विचारणीय बिन्दू यह हो सकता है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के प्रकोप के चलते क्या ये कदम पर्याप्त होंगे? भारत की 139 करोड़ की आबादी को देखते हुए 18 वर्ष से ऊपर के 80 करोड़ से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाई जानी है जिनमें से अभी तक केवल 16 करोड़ को कोवैक्सीन लग पाई है। 
 भारत की दो वैक्सीन निर्माता कम्पनियों ‘सीरम इस्टीट्यूट’ व ‘भारत बायोटेक’ के ‘कोविशील्ड’ व ‘कोवैक्सीन’ टीकों की कुल उत्पादन क्षमता अभी तक केवल आठ करोड़ मासिक ही है। इस उत्पादन क्षमता को बढ़ाये जाने के लिए दोनों कम्पनियों को ही ‘पूंजीगत मदद’ की सख्त जरूरत होगी। इसके साथ ही देश में इन दोनों कम्पनियों की वैक्सीनों के उत्पादन के लिए लाइसेंसिंग आधार पर अन्य फार्मा कम्पनियों को भी उत्पादन इकाईयां स्थापित करने की जरूरत है। इस बारे में बैंक चुप है। नई उत्पादन इकाईयां स्थापित करने के बारे में बेशक अभी केन्द्र सरकार को फैसला लेना है मगर इस सन्दर्भ में बैंक एक वित्तीय खांचा खींच सकता था। जाहिर है कि कोरोना का सबसे बुरा असर राज्य सरकारों पर ही होगा क्योंकि वे अपने-अपने स्तर पर इससे जूझने के लिए जरूरी कदम उठा रही हैं। इस क्रम में राज्यों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होने का अन्देशा है। इस समस्या का समाधान निश्चित रूप से रिजर्व बैंक के पास नहीं है क्योंकि राज्यों के अधिकतम वित्तीय स्रोत अब जीएसटी शुल्क व्यवस्था से जुड़ चुके हैं। अतः बहुत जरूरी है कि राज्यों को कोरोना के कहर से जूझने के लिए वे वित्तीय अधिकार दिये जायें जिससे स्थानीय स्तर पर वे कोरोना संक्रमण की रोकथाम करने के उपायों में लगे विभिन्न औद्योगिक व वाणिज्यिक संस्थानों को प्रोत्साहित कर सकें। 
यह आश्चर्य की बात है कि पिछले छह महीने से इस जीएसटी कौंसिल की एक भी बैठक नहीं हुई है। जबकि कौंसिल के विधान के अनुसार तीन महीने में कम से एक बार इसकी बैठक अवश्य होनी चाहिए। यह इसलिए जरूरी है कि कोरोना से निपटने के लिए चाहे दवाई हो या अन्य कोई उपकरण उस पर आयात या उत्पाद शुल्क की दर तय करने का अधिकार इसी के पास है। इस चिकित्सा इमरजेंसी के दौर में यदि आक्सीजन जैसी आवश्यक वस्तु पर भी उत्पाद शुल्क लगता है तो वह अन्यायपूर्ण है। इसके साथ ही ​िवदेशों से जो भी इससे सम्बन्धित संयन्त्र आ रहे हैं उन्हें भी फौरी तौर पर आयात शुल्क से छूट देने की सख्त जरूरत है। इस बारे में केवल यह ध्यान रखना होगा कि भारत की घरेलू उत्पादन इकाइयों पर विपरीत असर न पड़े। रिजर्व बैंक ने वैक्सीन उत्पादकों, चिकित्सा उपकरणों के आयातकों, चिकित्सालयों, डिस्पेसरियों, आक्सीजन आपूर्तिकर्ताओं व वैंटिलेटर आयातकों को आसानी से कर्ज उपलब्ध कराने की बैंकों  के लिए तजवीज पेश की है। अब यह काम सरकार का है कि वह एेसी सभी वस्तुओं की भारतीय बाजार में उपलब्धता प्रचुर मात्रा में सुलभ कराने के लिए आवश्यक शुल्क संशोधन करें। यह काम जाहिर तौर पर जीएसटी कौंसिल ही कर सकती है।
 हाल ही में पंजाब के वित्तमन्त्री श्री मनप्रीत बादल ने कौंसिल की बैठक बुलाने की मांग की थी। उनकी मांग पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए और वक्त की नजाकत को देखते हुए जीएसटी कौंसिल को यथानुरूप कदम उठाने चाहिए। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पिछले वर्ष आये कोरोना के पहले कहर के दौरान देश के लघु उद्यमियों पर बहुत कस कर मार पड़ी थी और इस तरह पड़ी थी कि इनके मालिक लाॅकडाउन के दौरान बन्द पड़ी अपनी फैक्टरियों के बिजली बिलों का भुगतान तक नहीं कर पाये थे। इसके साथ ही कई करोड़ लोग बेरोजगार हो गये थे और कम से कम तीन करोड़ मजदूर विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों से पलायन कर गये थे। सवाल इस समय सबसे बड़ा लोगों को राहत पहुंचाने का है और इस तरह है कि उनके रोजगार भी सुरक्षित रहें और उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहे। आर्थिक मोर्चे पर दूसरी सबसे बड़ी वरीयता इन्हीं लोगों की क्रय शक्ति को घटने से राेकने की होनी चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था और ज्यादा नीचे न जा पाये। इस बारे में एक विस्तृत योजना की सख्त जरूरत महसूस की जाने लगी है।

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