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हमने तूफानों से लड़ना सीख लिया

कोरोना महामारी की सुनामी के बीच तौकते (ताउ-ते) तूफान 12 किलोमीटर का सफर तय कर गुजरात के निकट दीव के तट से टकरा गया।

कोरोना महामारी की सुनामी के बीच तौकते (ताउ-ते) तूफान 12 किलोमीटर का सफर तय कर गुजरात के निकट दीव के तट से टकरा गया। पिछले दो दशकों में अरब सागर में बने किसी भी तूफान ने इतनी ज्यादा दूरी तय नहीं की। तूफान तो चला गया लेकिन यह तूफान 7 दिन में पश्चिमी तट के सभी पांच राज्यों और दो द्वीप समूहों में भारी तबाही के निशान छोड़ गया। केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात के अलावा लक्षद्वीप दीव समूह के तटीय हिस्सों में 200 से 400 मिली. मीटर तक वर्षा हुई। राहत की बात यह है कि  सुपर साइक्लाेन से महज एक लेवल नीचे के इस भयंकर तूफान से जनहानि बहुत कम हुई। दुर्भाग्य से मुम्बई में खराब मौसम की वजह से एक जहाज डूब गया और तीन अन्य जहाज समुद्र में फंस गए। नौसेना और तटरक्ष बल ने डूबते हुए 4 जहाजों से 215 लोगों को बचा लिया गया। अन्य लापता लोगों की तलाश की जा रही है। इस बार मौसम विभाग ने काफी सतर्कता बरती। जिसने तूफान की दिशा, गति और टकराव के सही स्थान की सटीक भविष्यवाणी की। मौसम विभाग ने सैटेलाइट इनसेट 3डी के जरिये हर मिनट में मिल रही तस्वीरों और पश्चिमी तट पर तिरुवनंतपुरम, को​च्चि, गोवा, मुम्बई और भुज में लगे पांच रडार के जरिये तूफान पर नजर रखी गई। सैटेलाइट की तस्वीरों के जरिये इसके केन्द्र यानी ‘आई’ की पहचान की गई। ‘आई’ की बदलती स्थिति के जरिये ही इसके बढ़ने की दिशा आैर गति की गणना की गई। मौसम विभाग के नोएडा और पुणे सैंटर्स में दो सुपर कम्प्यूटर के जरिये मैथेमैटिकल मॉडल चलाकर डेटा विश्लेषण​ किया जाता रहा। इनसे अगले दो हफ्तों के मौसम का पूर्वानुमान का पता चलता है। इसके बाद 6 और ग्लोबल माडल, जिनमें तीन अमेरिकी, एक यूरोपीय यूनियन, एक जापान और एक फ्रांस के माडल के निष्कर्षों को शामिल करके तूफान काे ट्रैक किया गया। इसके बाद तूफान के दीव और गुजरात के हिस्सों से टकराने के सात दिन पहले ही उसका रास्ता, गति और जानकारी जारी कर दी थी। इससे स्पष्ट है कि भारत ने आपदा में प्रबंधन करना सीख लिया। जिस तरह से एनडीआरएफ के जवानों ने आपदा के समय समुद्री तटों के साथ-साथ मैदानी इलाकों में अपनी जान जोखिम में डालकर हर मोर्चे पर काम किया, उसकी सराहना की जानी चाहिए।
प्रकृति के दो रूप होते हैं, दयालु और साथ ही आक्रामक। इसके मानव जाति को सबसे अधिक बार लेकिन ऐसे समय दर्शन होते हैं, जब यह आक्रामक हो जाती है। जब यह आक्रामक हो जाती है तो यह भयावह तबाही लाती है। प्राकृतिक आपदा एक प्रतिकूल घटना है जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होती है। एक प्राकृतिक आपदा से सम्पत्ति को नुक्सान और जीवन की हानि हो सकती है। सुनामी, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूंकप प्राकृतिक आपदाएं है।
कोई भी देश आपदाओं से सुरक्षित नहीं है, इसलिए भारत भी अपनी भौगोलिक स्थिति और विविध जलवायु के कारण एक अत्यधिक आपदाओं वाला देश है। केरल में बाढ़, तमिलनाडु और ओडिशा में चक्रवात, उत्तर भारत में भूकम्प जैसी कई आपदाएं हुईं। कोई समय था जब हमारे पास मौसम की सटीक भविष्यवाणी करने की कोई ठोस तकनीक नहीं थी। लोग मौसम विभाग का मजाक उड़ाते थे। समय के साथ-साथ भारत सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों और देश के लोगों पर आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न संस्थाओं, फंडों की स्थापना की। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, नेशनल रिमोट सेंसिंग सैंटर, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, केन्द्रीय जल आयोग जैसे संगठन स्थापित किए। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल तैयार किया।
भारत के आपदा प्रबंधन माडल में ओडिशा की भूमिका काफी अग्रणी रही है। बंगाल की खाड़ी के तट पर बसा भारत का पूर्वी राज्य ओडिशा अक्सर चक्रवात, बाढ़ और  कभी-कभी सुनामी की चपेट में आता है। यही वजह है कि ओडिशा को आपदा राज्य कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने ओडिशा की तैयारी की वैश्विक सफलता की कहानी के रूप में मान्यता दी और दूसरे शहरों के लिए भी इसे माडल के तौर पर इस्तेमाल की योजना बनाई। ओडिशा के तट पर बसे दो गांवों, गंजम जिले का वेंकटारायपुर और जगतसिंहपुर जिले के नोलियासाही को यूनेस्को इंटरगर्वनमेंटल ओशियाना ग्राफिक कमीशन से सुनामी के लिए तैयार की मान्यता मिली। इसकी वजह से हिन्द महासागर के क्षेत्र में भारत पहला ऐसा देश बना जिसने सामुदायिक स्तर पर इस तरह की आपदा से निपटने की तैयारी की है। 1999 में ओडिशा ने एक सुपर साइक्लोन का सामना किया था, जिसमें दस हजार लोगों की मौत हो गई थी। उस वक्त के दुर्भाग्यपूर्ण अनुभव ने राज्य को 480 किलोमीटर लम्बे तट पर बहुउद्देशीय चक्रवाती आश्रय स्थल बनाने के लिए प्रेरित किया जो सामुदायिक रसोई और जीवन बचाने वाले उपकरणों से लैस थे। ओडिशा के लोगों काे आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग दी गई। सरकारी और गैर सरकारी संगठन इसमें जुट गए। 
ऊफान तूफान से पहले भी ओडिशा बचाव के काम के​ लिए तारीफें बटोर चुका है। सुपर साइक्लोन फणी के दस्तक देने से पहले करीब 12 लाख लोगों को आश्रय स्थलों में भेज चुका था। इस बार गुजरात में दो लाख लोगों को सुरक्षित स्थानाें पर पहुंचाया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों से लगातार बातचीत करके स्थिति पर पैनी नजर रखी। कई आपदाओं में हमने देखा है कि एनडीआरएफ टीमों और अन्य बलों ने किस तरह हजारों लोगों को बचाया। आपदा प्रबंधन के दौरान अब हमारे पास व्यापक व्यवस्था का निर्माण हो चुका है। कोरोना काल में भारत में ई-कामर्स और लाजिस्टिक्स क्षमताएं बढ़ी हैं। आपूर्ति शृंखला काफी दुरुस्त हुई है। विज्ञान की मदद से हम काफी प्रगति कर चुके हैं।

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